मानसिक शक्ति - संकल्प -(1)

मानसिक शक्ति - संकल्प

मानसिक शक्ति-संकल्प | संकल्प की शक्ति

मानसिक शक्ति -संकल्प-1

- यदि कोई चीज़ या पहिया एक  सीध में घूमता  रहे और आगे चलता  रहे तो उसी स्थान पर आ जायेगा जहाँ से चला  था, क्योंकि धरती गोल है ।

-परमाणु के अन्दर चलने वाले एलेक्ट्रोंन भी  इसी भाँति घूमते है ।

-सारा ब्रह्माण्ड भी  ऐसे ही घूम रहा  है ।

-संकल्पों के सम्बन्ध में भी  यही बात है ।

-संकल्प या शब्द जिस स्थान से निकलते है, वहाँ  से निकल कर आगे आगे भागते है, पर यह भागना  अन्त में गोलाई के चक्र की पकड़ में आ जाते  है और फ़िर दूर  अंतरिक्ष की यात्रा करते हुए अपने मूल स्थान पर वापिस लौट आते है । वहां से फ़िर आगे बढ़ता  है और फ़िर वापिस लौटता है ।

-शब्द के कम्पनो की भी  यात्रा   इसी गति और  इसी चक्र से होती है । वे दूसरी को भी  प्रभावित करते है, परंतु उनका सब से अधिक प्रभाव  अपने ही उपर होता है । क्योंकि उस का  प्रत्येक यात्रा चक्र मूल को चिरकाल  तक प्रभावित करता रहता  है ।

इसे संकल्प का विज्ञान भी   कह सकते है ।

-हमे संकल्पों की शक्ति को समझना होगा ।

-हर सकरात्मक शब्द से सकारात्मक बल पैदा होता है जैसे  शाबास, मुबारक  या हमे आप पर गर्व है ।

-हर नकारात्मक शब्द जैसे मूर्ख, नालायक, नीच आदि कहने से नकारात्मक बल उत्पन्न होता  है ।

-मन अर्थात आत्मा  के असली गुण है शांति, प्रेम ,.सुख, आनंद  क्योंकि हर व्यक्ति वास्तव में यही चाहता  है ।

-यह संसार शांति और प्रेम पर खड़ा  है । जहां ये दोनो गुण है वहां स्वर्ग है.।

-अगर हम शांति और प्रेम के स्वरूप में टिके रहें या इन से सम्बन्धित विचार  या सिर्फ मैं शांत स्वरूप हूं, प्रेम स्वरूप हूँ या भगवान आप शांति के सागर है, प्यार के सागर हैं, ये विचार  मन में सिर्फ धीरे धीरे और प्यार से दोहराते रहे तो लगभग दस हजार  संकल्पों के बाद या अढाई घंटे के बाद हमारे में अथाह बल पैदा होगा और हम ईश्वर से ट्यून हो जायेगे ।

 कोई भी  व्यक्ति ज्ञानी वा अज्ञानी भी  ईश्वर से जुड़ जायेगा । उसके.जीवन में शांति और प्रेम की अनुभूति होगी और उसके जीवन में उन्नति होने लगेगी ।

-शांति और प्रेम यह आत्मा के मूल गुण है । सारा संसार इसी पर खड़ा  है । इन्ही दो शव्दो में अथाह बल है । इसे ही डेवेलप करना है ।

-कौन से शब्द व गुण का  अभ्यास करना चाहिये । जिस से हमे अपने जीवन में  मन इच्छित फल मिले तथा ईश्वरीय शक्तियों प्राप्त कर सके ।

-आप अपने को देखो आपको क्या पसंद है । शांति या प्रेम । अगर शांति पसंद है तो शांति का  अभ्यास हर समय करो अगर प्रेम पसंद है तो प्रेम  का  अभ्यास  करो ।

-शांति सब को प्रिय है इसलिये हम शांति के संकल्प  को ले कर चलते है ।

-मै शांत हूं शांत हूँ सदा  इस भाव में टिके  रहो ।  परमात्मा को देखते हुए आप शांति के सागर  है , इस गुण से याद करो । कोई व्यक्ति देखो या याद आयें तो उसको कहो आप शांत स्वरूप है । जब इस तरह एक ही संकल्प मन में रखेगे तो उस का एक गति चक्र बन जायेगा ।

-इसी तरह के और भी  अच्छे  शव्दो को हम ले सकते है । इन शव्दो को  बार बार  दोहराते  रहे तो उस  से उत्पन्न हुई  ध्वनि या कम्पन की तरंगे सीधी या साधारण नहीं रह जाती । वह एक वृत बन  जाती हैँ  और  वह  तरंगे घूमने लगती हैँ 

- इन तरंगो का   वृताकार रूप में  घूमना उस व्यक्ति और ब्रह्माण्ड में एक असाधारण शक्ति प्रवाह उत्पन करता है । उस के फल स्वरूप उत्पन्न  हुए   परिणामों  को चमत्कार कहेंगे  ।

-इस शब्द की शक्ति को दूसरे प्रकार से समझा जा सकता है ।

-शेर की दहाड़ से हम डर जाते  है ।

-कोयल की कूक सुनते ही मनुष्य में प्यार उमड़ने लगता है ।

-दही को मथने से माखन निकलता है ।

-शुध्द संकल्प को रीपीट करने से ऐसी शक्ति निकलती है जो रोग ठीक कर देती है । अलग अलग रोगॊ को ठीक करने के लिये कौन से शब्द और कितनी मात्रा में हो जो रोग ठीक हो जाये यह खोज करनी है ।

-अल्ट्रा साउंड तरंगों से  तरह तरह के इलाज सम्भव हो रहे है ।

-बिजली,भाप,एटम,बारूद आदि सूक्ष्म में कम्पन शक्ति ही है ।

-संकल्प से भी  कम्पन पैदा  होते हैंं  तथा  इस से हम सर्व श्रेष्ट ईशवरीय शक्तियों को पकड़ सकते है ।

-संगीत से पशु अधिक दूध देते है ।

-बीन  बजा  कर हम साँप को वश में कर सकते है ।

-संगीत से दीपक जला  सकते है ।

-बादलों  से वर्षा  करवा सकते है ।

-ऐसे ही हम अलग अलग  संकल्पों से उपलब्धिया पा सकते है । परंतु यह खोज करनी है । इस से संसार का कल्याण होगा ।

-मोटे  तौर  पर हम जानते  है कि    जीभ बोलती है ।

-वास्तव में कंठ, होंठ, जीभ, तालू, दाँत, आदि मुख के भीतरी भाग  संकल्प व बोल उच्चरित करते है ।

-यह शब्द ईंथर तत्व में मिल कर धरती के   एक छोर  से दूसरे छोर  तक ही  नहीं फैलते  वरना  पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते हैंं  ।

-जो शब्द हमारे मुख से निकला  वह कुछ  सेकेंड के अंतर से इस स्थान से उस स्थान पहुंचेगा ।  चंद्रमा आदि निकट उपग्रहों तक पहुंचने में कुछ  मिनिट लगेंगे । नौ ग्रहों की  कक्षाए पार करते करते उस शब्द को कुछ घंटे लगेंगे । फ़िर आकाशगँगा  को पार करेगा  ऐसी करोड़ आकाश  गँगाओ  को पार करता  हुआ हमारा  शब्द वा विचार  आगे बढ़ता  रहेगा । आखिर में गोल सिंद्धांत   के अनुसार वापिस 5000 साल में हमारे पास लौट  आयेगा ।

-जब कोई क्रोध  से बडबडाता है तो उसी तरह के  विचार दौडे चले आते है । जब कोई प्रेम और करुणाजनक शब्द बोलता है तो वैसे ही मिठास  भरी कोमल विचार  मस्तिष्क में चले आते है । इसलिये कहा  जाता  है  बोला हुआ एक एक शब्द मंत्र है ।

-कडुवा, तीखा  और निरर्थक की बक बक  की प्रतिक्रिया  वैसे ही तत्वों को और बढा  देती है । जिस से मन में अशांति पैदा  हो जाती है ।

-शुध्द संकल्पों  से शरीर एवम मन में विचित्र प्रकार  की हलचले पैदा  हो जाती है, जो आकाश में उड़ कर विशेष व्यक्तियों  एवम परिस्थितयों एवम समूचे वातारण  को प्रभावित करती है ।

-जैसे  गीत लय में गाते है या तेज गति में गाते है  तो उनका  प्रभाव उसी अनुसार अच्छा  वा बुरा महसूस किया  जाता  है ।

-ऐसे ही शांति, प्रेम, सुख, आनँद के शब्द परमात्मा  बिंदू को सामने देखते हुये लय से बोलो तो उसका  प्रभाव बहुत जबरदस्त होता है । जैसे आप प्यार के सागर  है ।

-शांति और प्रेम के शब्द पैदा होते ही स्वय  को प्यार का  अनुभव कराता  है फ़िर दूसरे जो भी  सम्पर्क में आते उन्हे भी  अनुभव होता है ।

-आग जहाँ पैदा  होती है, वहां गर्मी देती है, फ़िर वातावरण को गर्म  करती है ।

-हाथों  को घिसा  जाये तो गर्मी पैदा  होती है ।

-सक्ल्प के रिपीट करने से घर्षण  उत्पन्न होता है । यह घर्षण सूक्ष्म शरीर के भिन्न  भिन्न  अंगो को प्रभावित करते है । ऐसे ही ब्रह्माण्ड भी  प्रभावित होता है । सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति भी  प्रभावित होते है ।

-संकल्प शक्ति ही चमत्कार है ।

-संकल्प से सूक्ष्म ध्वनि अर्थात कम्पन्न  पैदा  होता  है ।

-यह कम्पन हम  लयबध  ढंग से अर्थात प्यार से, दया भाव से, कल्याण भाव  से, महान बनाने  के भाव  से, ठीक करने के भाव  से,मन में रिपीट करते है तो वैसा ही बल  उत्पन्न  होने लगता है ।

- तब वह संकल्प व बल वृत्ताकार हो कर घूमने लगता है, जितना ज्यादा  घूमता है उतना ही बल बढ़ता  जाता  है और जिस भी  लक्ष्य के लिये है, वह लक्ष्य पूर्ण होता  है ।

-जब हम अपने संकल्प को परमात्मा  से टकराते है  तो अथाह बल बनने लगता है जो लक्ष्य भेदी  तरंगो  की तरह काम करने  है ।

-संकल्पों से बल उत्पन्न कैसे होता है


-जब हम विचार करते है तो ये विचार अपने आप एक बल है ।

- परमात्मा  पर बार बार विचार  टकराने से  कम्पन पैदा होता  है । धीरे धीरे यह कम्पन एक चक्र का रुप धारण कर लेता है ।

-संकल्पों के इस चक्र से तीन प्रकार के कार्य होने लगते है ।

-स्थूल रुप में हमारे  चारो तरफ़ चक्र बन जाता है, जो बाहरी  नेगेटिव विचारो का असर नहीं होने देता    तथा  ये  विचार  बाहरी दुनिया में सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति एवम वस्तुओं पर भी प्रभाव डालते है । उन्हे बदल देता  है ।

-मन के अन्दर जो बुरी वृतीया है, उनके चारो तरफ़ सूक्ष्म चक्र बना देता  है। जिस से  पुराने संस्कार बाहर नहीं  निकल सकते । वह वृत्तिया दबी रह जाती है ।

-यह सूक्ष्म चक्र का घेरा  जो हमारे शरीर में सात प्रकार  के उर्जा चक्र है उनको भी  अक्टिवेट करता है ।

-हमरे अन्दर तीन सूक्ष्म उर्जा नाड़ीया, इडा, पिंगला और सुषमना   भी  प्रभावित होती  है ।

-भगवान  को याद करना माना भगवान को  मन की आँखो से देखते रहो और उसके गुण गाओ , गुण गाना माना हमारे  विचार  भगवान  से टकराते है । विचार  टकराने से ऊंच  कोटि के कम्पन पैदा होते है । इन  कम्पनो  से अथाह बल पैदा  होता है ।  ये बल पूरे  ब्रह्माण्ड को प्रभावित करता है ।

-विचार  तरंगे थोड़ा  आगे बढ़ कर विश्व के परमाणुओं में फैल जाती है  और कुछ  ही सेकेंड्स में प्रतिक्रिया सहित वापिस लौट आती है ।

-परावर्तित  अर्थात जो तरंगे लौट कर आती  है वे अपने में उसी तरह के और विचार  लेकर लौटती है ।

-जब कोई बडबडाता है तो उसी तरह के विचार  दौड़े  चले आते है ।

-जब कोई करुणा और मीठे  शब्द बोलता है तो वैसे   ही मिठास  के कोमल विचार  मस्तिष्क में चले आते. है ।

-बोला हुआ प्रत्येक शब्द एक शक्ति है, मंत्र है ।

-इस लिये सम्भल कर और बहुत ही मीठा  बोलना चाहिये  ।

-कड़वा, तीखा  और निरर्थक की बकवाद  की प्रतिक्रिया वैसे ही तत्वों को बढा  देती है । जिस से मन में अशांति पैदा हो जाती है ।

-किसी शब्द को मन में सोचा  जाये तो वह एक विशेष गति से आकाश के परमाणुओं के बीच बढ़ता  हुआ उस शक्ति तक पहुँचता  है जिस को दिमाग में रखा  गया है, भगवान, देवता या और कोई  सिद्ध पुरुष ।

-संकल्प को  दोहराने से, संकल्प को शक्ति मन में मिलती है । इस शक्ति के द्वारा जो शब्द दोहरा रहे है वह विद्युत तरंगों  में बदल जाते है.।

-यह विद्युत तरंगे ईष्ट  से जल्दी से बढ़ती हुई  टकराती है । उस इष्ट से अदृश्य सूक्ष्म परमाणु मंद गति से परावर्तित होने लगते है, उनकी दिशा  ठीक उल्टी होती है । सूक्ष्म और स्थूल दोनो तरह के परमाणु साधक  की तरफ़ दौड़  पड़ते है और साधक  को शारीरिक और मानसिक लाभ पहुंचाते  हैं ।

-जितनी अधिक एकाग्रता होगी उतने ही परमाणु तीव्रता से परावर्तित होगे ।
ओम शान्ति.. 

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