मानसिक शक्ति
-मानसिक शक्ति
- संकल्प के दो रुप है । एक है स्थूल शब्द जो मुख द्वारा सुनाते है तथा कानो द्वारा सुनते है ।
-दूसरे शब्द वह होते है जो स्थूल शब्द है उनका सूक्ष्म रुप जो मन में उठ रहे होते है जिसे हम भावना वा इच्छा कहते है । इस भावना और इच्छा के द्वारा शब्द निकल रहे है ।
--शरीर को भोजन से शक्तिशाली बनाया जाता है ऐसे भावना वा इच्छा को शक्ति देने लिये ध्यान का अभ्यास करना पड़ता है ।
-आलसी और अहंकारी अपने शरीर तथ मन को बीमार कर लेता है ।
-आन्तरिक मन को शक्तिशाली बनाने का प्रयास छोड़ देता है तो वह मनुष्य पशु एवम पिशाच बन जाता है ।
-उसके मन में दुर्भावनाये एवम दुष्ट वृत्तिया भरी रहती है ।
-वह स्वयं मन में जलता रहता है और दूसरो को कष्ट देता है । परंतु मन से बड़ा मीठा होता है । यह लोग विष कन्या कहलाते है ।
-शरीर और मन को श्रेष्ट बनाने लिये अंतःकरण को सुधारने की मेहनत करनी है । इसका सुधार योग से होता है ।
-स्थूल शब्द को रिपीट करते है तो वह अंतःकरण की गहराई में उतरता है और उस शक्ति स्त्रोत की उर्जा से सम्पन्न हो कर ऊपर आता है । वह बाहर प्रदर्शित होता है ।
-तार का एक सिरा विद्युत के डायनमो से लगाते ही दूसरे सिरे पर विद्युत आ जाती है और उस से हम काम करते है ।
-संकल्प सूक्ष्म जगत को स्पंदित करता है तथा व्यक्ति को दिव्य शक्ति से सम्पन्न बना देता है ।
--सकारात्मक शब्द वाणी का तप है तथा सूक्ष्म संकल्प ही शब्द में बदलता है । संकल्प भी सूक्ष्म शब्द ही है ।
-कुएँ में बाल्टी डालना और खीचना तप है । जल भरी हुई बाल्टी हाथ में आती है तो वह सिंद्वि है । साधना और सीधी में भी यही सम्बन्ध है ।
-स्थूल उर्जा विद्युत, चुम्बक, गर्मी, प्रकाश के रुप में देखी जाती है ।
-इन शक्तियों का उत्पादन कहीं और होता है।
-तेल डाल देने से पानी की सतह पर फैल जाता है ।
-थोड़ा सा ज़हर सारे शरीर में फैल जाता है ।
-ऐसे ही शांति और प्रेम के शब्द जब हम मन में रिपीट करते है तो वह शरीर की हर कोशिका तथा ईथर द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते है ।
-यह शब्द अच्छाई से टकरा टकरा कर शक्तिशाली बन जाते है जैसे जंगल में माचिस की तीली से निकली आग प्रचंड रुप ले लेती है ।
-शांति और प्रेम दूसरे व्यक्तियों एवम प्रकृति के परमाणुओं को बदलती है ।
-संगीत का शरीर व मानसिक स्वस्थ्य पर प्रभाव पड़ता है ।
--ऐसे ही शांति, प्रेम तथा सकारात्मक संकल्प एक संगीत की तरह प्रभाव डालते है ।
-ध्वनि यंत्र इसी नियम पर बनाये गये है ।
-अग्नि शक्ति का केन्द्र है । इस से भोजन बनता है, कारखाने चलते है, बारूद बनता है । अग्नि ही जीवन है ।
-ऐसे सकरात्मक शब्द से अनंत गर्मी पैदा होती है जो बुराइयों को , बुरी वृत्तियों को, बुरे संस्कारो को नष्ट कर देती है ।
-भौतिक विज्ञान बाहरी जगत को प्रभावित करता है । आध्यात्मिक विज्ञान आन्तरिक क्षेत्र को प्रभावित करता है ।
- भौतिक विज्ञान सुख का उत्पादन करता है । आध्यात्मिक ज्ञान अतिइन्द्रिय सुख पैदा करता है ।
🔮आंतरिक बल 1143
😇-मानसिक शक्ति
-वस्तुओं और शरीरो की तरह मन को भी स्वच्छ और स्वस्थ रखा जाये तो इस क्रिया कलाप को अध्यात्म कहते है ।
-भौतिक विज्ञान को प्रत्यक्ष करने के उपकरणों को यंत्र कहते है और आत्म विज्ञान में उसे मंत्र कहते है ।
-भौतिक विज्ञान में थ्योरी और प्रेक्टिकल होता है ऐसे ही आध्यात्मिक विज्ञान में सूक्ष्म जगत का ज्ञान और साधना की जरूरत होती है ।
- मनुष्य और परमात्मा में गहरा सम्बन्ध है ।
-बिजली घर और घर में लगे पंखे के बीच तार में कमी आ जाये तो दोनो अपनी अपनी जगह होते हुए भी हवा का कार्य नहीं होगा ।
-- मनुष्य जीवन में जितना भी दुख है उसमे 25% शारीरिक है और 75% भाग मानसिक है ।
-मानसिक बल बढ़ जाने से सुखों में वृध्दि हो जाती है और दुखों में कमी होने लगती है ।
-स्थूल वस्तुओं की सहायता से स्थूल वस्तुएँ पकड़ने की विधि सब को मालूम है ।
-लिखने के लिये कलम पकड़ते है । पैरों की सुरक्षा के लिये जूते पहनते है । अंगारे को चिमटे से पकड़ते है । बिजली तार को रबड़ चढ़ा कर पकड़ते है ।
-अदृश्य शक्तियों को कैसे पकड़े यह नहीं जानते ।
-बिजली, भाप, गैस, परमाणु आदि शक्तियां सदा से मैजूद थी पर आज से 500 साल पहले लोगो को पता नहीं था कि इन्हे कैसे पकड़े और अपने काम में लाये । आज इनका भरपूर लाभ उठाया जा रह है ।
-दिव्य शक्तियां बिजली, भाप, परमाणु आदि से भी अधिक सूक्ष्म है, इस लिये यह अभी पकड़ में नहीं आई हैं ।
-सूक्ष्म शक्तियां उस जाती की है जिस जाती की हमारी आत्मा है ।
-आत्मा को ऐसी विशेष परिस्थितियो में ढाला जाये जो उन दिव्य शक्तियों के अनुकूल हो तो इस प्रकार उनके समान चुम्बकतव बल पैदा होगा और उन शक्तियों को पकड़ना सम्भव् हो सकेगा ।


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