मन एक रेडियो स्टेशन- एंटी टाईम तरंगें
📻-मन एक रेडियो स्टेशन है ।
😇-एंटी टाइम तरंगे
-यह संसार 186000 मील प्रति सेकेंड की गति से चल रहा है ।
-अगर कोई ऐसी विधि हो जो हम 186000 मील की गति से समय के उल्टा चलने लगे तो संसार थम जाएगा ।
-इस पर विज्ञानिक खोज कर रहे है ।
-परन्तु हमारे मन से ऐसी तरंगे निकलती रहती है जो एंटी टाइम कार्य कर रही है ।
-हम सूर्य का जो प्रकाश देखतें है यह 8 मिनट पुराना है क्योकि सूर्य से धरती पर प्रकाश पहुंचने में 8 मिनिट लगते है ।
अरबो प्रकाश वर्ष लगते है ।
-परन्तु हम आंखो यां मन से एक सेकेंड में सूर्य यां आकाश को देख लेते है ।
-इस से सिद्व है कि हमारे मन से ऐसी तरंगे निकलती है जो पलक झपकते ही अनंत दूरी तय कर लेती है । इस का मतलब यह है कि ये तरंगे समय कि गति से तेज है । अतः हम कह सकते है कि मन की गति एंटी टाइम है ।
-वास्तव में यह सच है ।
-ईथर तत्व सारे ब्रह्मांड में व्यापक है । यह तत्व ध्वनि और संकल्पों का सुचालक है ।
-हमारे दिमाग का वह भाग जहां हम सोचते है वहां ईथर है ।
-हम जो कुछ सोचते है वह ईथर में ही सोचते है ।
-इस का मतलब है कि हमारे सोचते ही हमारे संकल्प ईथर में प्रवेश कर के दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाते है
-ईथर में प्रवेश करते ही संकल्पों की गति एंटी टाइम हो जाती है ।
-ये नियम हरेक व्यक्ति में कार्य कर रहा है परन्तु इस के बारे कोई जानता नहीँ है ।
-ये जो हम सोचते रहते है और हम एक पल में देहली दूसरे पल अमेरिका और तीसरे पल नागपुर और चौथे पल हिसार पहुंच जाते है । हमारा मन हकीकत में यहां पहुंच गया था ।
-परन्तु हमारी तर्क बुद्वि यह नहीँ मानती कि हम सचमुच में पहुचते हैं । अगर हम तर्क बुद्वि को सुला दे तो जो हम ने सोचा है मन में देखते है वह सचमुच में दिखने लगेगा ।
-हिपनोटिज्म में तर्क बुद्वि का सोचना बंद कर देते हैं ।
-यह योग साधना, व्रत पूजा पाठ और कुछ नहीँ हम अपनी तर्क बुद्वि को अपने वश में करते हैं ।
-तर्क बुद्वि बहुत हट्टी है । भगवान ने हरेक मनुष्य को बुद्वि दे रखी है । मनुष्य अपनी बुद्वि से ज्यादा कुछ नहीँ मानता । आप उससे चाहे कितना समझा लो नहीँ मानेगा ।
- आप किसी को कहो अच्छी सेहत के लिए सैर किया करो । वह व्यक्ति नहीँ मानेगा । वह तभी मानेगा जब उसे कोई शरीरिक रोग घेर लेगा ।
-कई व्यक्ति चीनी बहुत खाते है । उन्हे आप कितना भी समझाओ कि ज्यादा चीनी से शुगर हो जाती है । कम खाया करो । वह नहीँ मानेगा वह तब मानेगा जब कोई रोग उसे घेर लेगा और डॉक्टर कहे कि चीनी बंद करो ।
-बच्चो को पढ़ाई का महत्व समझ नहीँ आता । जब उंम्र बीत जाती है तब समझ आता है ।
-हमारी समस्याओ कि जड़ अज्ञानता हैं । अज्ञानता अर्थात कम बुद्वि । यह बुद्वि मानती नहीँ । इसे मनवाना पड़ता है ।
-बूद्वि मानती है जब कोई बात हम बार बार रिपीट करें । पहली में पहाड़े याद करने लिए जोर जोर से क्लास के सभी विद्यार्थी इकट्टे हो कर बोलते थे । वह पहाड़े हमें जीवन भर याद रहते हैं ।
-बुद्वि मानती है जब कोई चीज लिखी हुई हम पढ़ते है । यही कारण है पुस्तके पढ़ने से बुद्वि विकसित होती है ।
-बुद्वि बदलती है योग/ध्यान साधना का अभ्यास करने से ।
-बहुत तीखा योग हो तब बुद्वि बदलती है ।
-थोड़ा बहुत यां चलते फिरते योग लगाने से बुद्वि नहीँ बदलती । यही कारण है कि वर्षो से रा
जयोगी साधना कर रहे है परन्तु संस्कार बदले नहीँ । पांच विकारों से वैसे के वैसे परेशान है जैसा पहले थे ।
-निरंतर कुछ .ना कुछ योग के साथ साथ पढ़ते भी रहो ।
-जीवन में कोई भी कमी कमजोरी यां बीमारी आदि हैं, कोई भी तन मन धन और संबंध कि कमी हैं तो इस का मतलब बुद्वि कमजोर हैं । इसे ठीक करने का साधन हैं पुस्तके पढ़ना और योग लगाना ।
-अगर हम तर्क बुद्वि को जीत लें तो हम मन द्वारा जो कुछ सोचते हैं देखतें वह मनचाही चीजे हम प्राप्त कर लेगे और किसी भी स्थान पर हम एक पल में पहुंच जाएंगे ।
-कहते हैं श्री गुरुनानक देव जी में यह शक्ति थी । उसकी बहिन नानकी जब कभी उसे याद करती थी वह अपने शिष्य बाला और मर्दाना सहित तुरंत पहुंच जाते थे ।
-कई लोग मानते हैं कि शरीर सहित एक से दूसरे स्थान पर पहुचना मुश्किल हैं ।
परन्तु यह तो हो सकता हैं कि वह सूक्ष्म शरीर से बहिन के पास पहुंच जाता हो और बहिन को ऐसा भ्रम हो जाता हो कि वह सचमुच में पहुंच गया था ।
-तर्क बुद्वि को जीतने के लिए बहुत तप की जरूरत हैं । यह एक असम्भव कार्य हैं ।
-परन्तु कुदरत अपनी शक्तियो को पाने का कोई ना कोई सहज उपाय भी छोड़ती हैं । उसे ढूंढ़ना होता है ।
-सहज उपाय क्या हैं ?
-यह जो हम मन द्वारा यहा वहां जाते रहते हैं बस इसे मान लें कि सूक्ष्म स्तर पर यह सच में हो रहा हैं । दिमाग की इस शक्ति का उपयोग करना हैं । इसे समझना हैं ।
- जब कभी कोई गहरी चोट लगती हैं तो मनुष्य कोमा में चला जाता हैं या बेहोश हो जाता है ।
- वास्तव में जब असहनीय चोट लगती है तो ऐसी स्थिति में हमारा तर्क मन गहरे तल पर चला जाता हैं जहां बहुत शांति होती हैं । कई बार यह इतना गहरा होता हैं कि वापिस नहीँ आ सकता । जिसे हम कहते हैं फलाना व्यक्ति कोमा में चला गया हैं ।
-हमारे मन में शांति के बहुत गहरे तल हैं ।
-इसे हम ऐसे समझ सकते है कि सतयुग के पहले जन्म में सबसे ज्यादा शांति थी । दूसरे जन्म में उस से कुछ कम शांति थी । इसी तरह सतयुग के 8 जन्म और त्रेतायुग के 12 जन्म कुल 20 जन्मो तक आज की तुलना में बहुत ज्यादा शांति थी, हम निरोगी थे सर्वगुण सम्पन्न थे । इन सभी जन्मो की रेकॉर्डिंग हमारे मन में गहरे स्तर पर पड़ी हुई हैं ।
-अगर हम अपने मन को इन गहरे स्तरों पर लें जाए तो हमें वहां की अनुभूति होने लगेगी ।
-हमारा मन एंटी टाइम ट्रेवल करता हैं ।
-जब कभी मन में अशांति हो ।
-तब कहे ऐ मेरे मन सतयुग के पहले जन्म में चल जहां बहुत शांति हैं । यह सोचते ही हमारा मन वहां पहुंच जाता हैं । बस इस संकल्प को रिपीट करते रहो । आप इस संकल्प को 10 हजार बार एक दिन में रिपीट कर दो । तब आप को पहले जन्म की रेकॉर्डिंग में से अथाह शांति अनुभव होने लगेगी ।
-इसी तरह अपने मन को दूसरे, तीसरे से 8 वे जन्म में टिकाए आप को उन जन्मो की रेकॉर्डिंग से सुख शांति महसूस होने लगेगी ।
-ऐसे ही त्रेतायुग के 12 जन्मो में जाने का अभ्यास करें और वहां से शक्ति प्राप्त करें ।
-ऐसा करते समय बाबा के बिंदु रूप या इष्ट को सामने देखतें रहे । इस से आप की शक्ति बढ़ जाएगी ।
-बाबा ने एक बार ऐसा प्रयोग किया था । कुछ बहिनो को एक कमरे में 7 दिन रखा था । उन्हे कमरे में सब सुविधाए दी गई थी । उन्हे बाहर किसी भी व्यक्ति को नहीँ देखना था । उन्हे दिन रात योग करने को कहा गया ।
-वह बहिने 2-3 दिन के बाद अपने को सतयुग में समझने लगी । उनकी उम्र ज्यादा थी । परन्तु वह अपने को छोटी छोटी राज कुमारियाँ समझती थी ।
-उनके सामने यज्ञ के भाई बहिनें जब आते थे तो उनका सतयुग वाला शरीर दिखता था । कई उनमे से दासी या नौकर दिखते थे तो कई राजा दिखते । वह भाई बहिनें सतयुग में जो बनने वाले थे उनका वह रूप उन्हे दिखता था ।
-अगर हम सतयुग की स्मृति में स्थित रहे तो हमारे को सभी व्यक्तियों का सतयुग वाला रूप दिखने लगेगा और हमारे में सतयुग वाले सारे गुण आ जाएंगे ।
-यह सब इथर के माध्यम से मन की एंटी ट्रावेलिंग तरंगो के कारण होता है ।
-जब हम कोई पास्ट की बात सोचते है, कोई घटना के बारे, किसी व्यक्ति के बारे या इतिहास के बारे, तो उस समय हमारे मानसिक एंटिना से एंटी टाइम तरंगे निकलती है ।
-पास्ट में जिस किसी के बारे सोचते है । सोचते ही हम वहां पहुंच जाते है । परन्तु यह बहुत गहरे स्तर पर हो रहा होता है । अगर हम उस विषय पर सोचते रहे तो उस समय की सारी चीजे हमारे दिमाग में आने लगेगी ।
-आप ने एक महीना पहले कोई पार्टी की थी । आज अगर आप से पूछे पार्टी में क्या हुआ था । तब आप पार्टी का ब्यौरा सील्स्लेवर देने लगेगे । ऐसे लगेगा जैसे आप के सामने अब पार्टी हो रही है । जब कि यह एक महीने पहले की बात है । सुनने वाला भी आप की बात मानेगा क्योकि आप वहां उपस्थित थे ।
-सतयुग में हम सर्व गुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे । अथाह सुख शांति थी । उस समय स्वर्ग था । निरोगी काया थी ।
-जीवन में सम्पूर्णता लाने के लिए आप अपने मन में सोचो मैं सतयुग में हूं और पहले जन्म में हूं । मैं स्वर्ग में हूं । बस इसे मन में दोहराते रहो । ऐसा करते रहने से सतयुग के सारे गुण आप में आने लगेगे । आप का शरीर भी ठीक होने लगेगा ।
-सतयुग के जन्मो की रेकॉर्डिंग हमारे अंदर बहुत गहरे अवचेतन मन में पड़ी हुई है । इसे ऊपर लाने में थोड़ा बल की जरूरत होती है ।
-समुन्दर से तेल निकालने लिए गहरा बोर करना पड़ता है ।
-धरती से पानी लेने के लिए नलका या ट्यूबवेल लगाना पड़ता है । इस के लिए भी बोर करना पड़ता है । बोर करने लिए हमें मशीनरी का सहारा लेना पड़ता है ।
-ऐसे ही सतयुग में मन को लें जाने लिए भी हमें ईश्वरीय बल का सहारा लेना पड़ता है ।
-अपने सामने कल्पना में परमात्मा के बिंदु रूप को देखो या अपने इष्ट को देखो । तथा मन में संकल्प करो मैं सतयुग के पहले जन्म में हूं । मैं स्वर्ग में हूं । मैं सतयुग में हूं । इसे रिपीट करते रहो । धीरे धीरे स्वर्ग के सारे गुण आप में आने लगेगे ।
-आप काम करते हुए, चलते हुए, खाते पीते, उठते बैठते यही संकल्प दोहराते रहो मैं स्वर्ग में हूं । स्वर्ग में हूं ।
-यह अभ्यास मन में करना है । मुख से नहीँ बोलना । किसी से डिसकस नहीँ करना । क्योकि लोग इसे कोरी कल्पना कह कर आप का मनोबल तोड़ देगे ।
- कहते है अगर 8 घंटे हर रोज योग लगाए तो तब हम इस अवस्था को पा सकते है । इसे मुक्ति की अवस्था कहते है । यह भी कहते है इस अवस्था को पाने लिए 7 जन्म लगते है ।
-परन्तु यह इतना मुश्किल नहीँ है ।
-अगर आप एक दिन में 10 हजार बार इस संकल्प को रिपीट करते है कि मैं स्वर्ग में हूं या अढ़ाई घंटे योग में इसी संकल्प को रिपीट करते है तो आप को एक दिन में ही अजीब सा अनुभव होगा । आप का आंतरिक विकास होने लगेगा ।
-अगर आप समझते है यह भी मुश्किल है । तब
-आप जितना समय बैठ सकते है बैठ कर अभ्यास करो मैं स्वर्ग में हूं । फिर चलते फिरते जब भी याद आए बस इसी संकल्प को रिपीट करना है । यह अभ्यास 6 मास तक करना है । 6 मास बाद आप के जीवन में सतयुगी गुण अपने आप आ जाएंगे । अभी मनुष्य में क्रोध, लोभ, मोह अहंकार जैसे विकार अपने आप थोड़ी सी परिस्थिति होने पर आने लगते है । इस अभ्यास से कोई भी परिस्थिति आने पर मन में सदा शांति बनी रहेगी और हम भड़केगे नहीँ । हम आराम से कार्य करेगे ।
-यह सब इस लिए होता है क्योकि मन की एंटी टाइम ट्रवेलिंग तरंगो से सतयुग में पहुच जाते हैंं और उसी स्थिति अनुसर प्रदर्शन करते है ।
-आज हरेक व्यक्ति किसी ना किसी रोग से पीड़ित है ।
-रोगो का कारण कोई ना कोई विकार है ।
-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष और आलस्य आदि मुख्य विकार है ।
-आप के मन में कौन सा विकार ज्यादा है । बस वही विकार बीमारी का कारण है । क्योकि जब कोई विकार मन में बहुत लम्बे समय तक उठता रहता है वही बीमारी बन कर हमारे सामने आ जाता है ।
-इन विकारों की शुरुआत द्वापर युग से हुई है । इस से पहले कोई विकार नहीँ था । द्वापर से कलयुग तक 63 जन्म के विकार हमारे अवचेतन मन में भरे हुए है ।
-विकारों को खत्म करने लिए हम राजयोग का अभ्यास करते है । योग की गहराई ना होने कारण ये विकार खत्म नहीँ होते । योग के लिए ज्यादा समय नहीँ निकाल पाते । बाबा कहते है 8 घंटा योग लगाओ, 8 घंटा काम करो और 8 घंटा नींद करो ।
- हकीकत में 8 घंटा योग लगाना मेहनत है ।
-इन विकारों को खत्म करने के लिए हमें मन की आंन्टी टाइम ट्रेवल शक्ति का प्रयोग भी करना चाहिए ।
--सिर्फ सोचो मैं द्वापर युग के पहले जन्म में हूं । आप के सोचते ही आप का मन अपनी एंटी टाइम ट्रेवलिंग तरंगो से तुरंत द्वापर युग में पहुंच जाता है ।
-कल्पना में अपने द्वापर युग के पहले जन्म के मां बाप, भाई बहिनो को, चाचा चाची, स्कूल या कॉलेज के टीचर्स और स्टूडेंट्स को देखो, जिन लोगो से काम धंधे के दौरान मिले उन्हे देखो । इस के इलावा और दूसरे अड़ोसी पड़ोसी जिन के सम्पर्क में पूरे जन्म में आए । इन सब को भगवन को सामने देखतें हुए कहो आप शांत स्वरूप है । आप शांत स्वरूप हैं । ये अभ्यास कम से कम 10 मिनिट हर रोज जरूर करना है ।
-ऐसा अभ्यास करने से जिन लोगो से हमारे कार्मिक हिसाब किताब बने । वह हिसाब किताब वहां से खत्म होना शुरू हो जाएंगे ।
-इस तरह द्वापर के दूसरे जन्म के लोगो को तरंगे दो ।
-अगले दिन द्वापर युग के तीसरे जन्म के लोगो को तरंगे दे ।
-इस तरह द्वापर के चौथे पांचवे और 21वे जन्म के लोगो को तरंगे दो ।
-ऐसे ही कलयुग के प्रत्येक जन्म के लोगो को एक एक दिन तरंगे देते रहो ।
-योग के सथ साथ इस ढंग से हम अपने पुराने जन्मो में बने हिसाब किताब को सहज ही खत्म कर सकते है ।
--इस ढंग से हम बहुत जल्दी सर्वगुण सम्पन्न 16 कला संपूर्ण बन। जाएंगे ।
-हिपनोटिज्म में ऐसे ही पुराने जन्मो में लें जाते हैं और रोगो का उपचार करते हैं ।
-हिपनोटिज्म ज्यादा से ज़्यादा पिछले 7 जन्म तक जा सकते हैं । इसके आगे रिस्क होता हैं । हो सकता है .आत्मा वापिस ही ना आए और व्यक्ति पागल बना कर रह जाऐ ।
-मन की एंटी टाइम तरंगो का प्रयोग करने से कोई नुकसान नहीँ । लाभ ही लाभ है ।
-जिन लोगो से अनबन हैं । इन के लिए भी एंटी टाइम तरंगो का प्रयोग करो ।
-मन में सोचो ऐ मन उस जन्म में चल जिस जन्म से अमुक आत्मा से मेरा हिसाब किताब शुरू हुआ । ऐसा सोचते ही आप का मन वहां पहुंच जाएगा । अब बाबा को मन में सामने देखतें हुए उस समय जो व्यक्ति से गलत व्यवहार किया थे उसे ठीक कर दो । मान लो उस समय इसे चामाटा मारा था । अब उसी समय चामाटा मारने के बजाय इस की थोडी हाथ लगाओ और कहो मान जाओ । यह शब्द उसके दिमाग की हीलिंग कर देगा और वर्तमान में आप से अच्छा व्यवहार करेगा ।
-जब तक विरोधी से सबंध ठीक नहीँ हो जाते यह अभ्यास जरूर करना हैं ।
-जब हम बाबा ( भगवान ) को याद करते हैं तो उस समय मानसिक रेडियो से एंटी टाइम तरंगे निकलती हैं जो ईथर के माध्यम से परमधाम में बाबा के पास पहुंच जाती हैं ।
-योग का मतलब भगवान को देखते रहो । यह देखना भी इसके पीछे विज्ञानिक कारण हैं ।
--हमारे मोबाइल को गुगल हमारे से दूर होते हुए अपडेट करता रहता हैं । क्योकि गुगल के पास प्रोगरामिंग होती हैं ।
-हमारी आत्मा की प्रोग्रामिंग में वायरस आ गया हैं ।
-बाबा को मन में देखतें रहने से बाबा के सारे गुण सारी शक्तियां हमारे में आ जाती हैं अर्थात हमारी प्रोग्रामिंग हो जाती हैं ।
- इसी सिद्वांत पर आधारित मन की एंटी टाइम तरंगो द्वारा हम भूतकाल में जो लोग थे उन जैसे बन सकते हैं ।
-आप महात्मा बुध, क्राइस्ट, गुरु नानका देव को याद करें, उन्हे कल्पना में देखे तो हमारी एंटी टाइम तरंगे कल्पना में देखतें ही उन से सम्पर्क कर लेती हैं । बस उन में मन लगाए रखे तो उनके सारे गुण आप में आ जाएंगे ।
-आप चाणक्य जैसा बनना चाहते हैं उसे मन में हर समय देखतें रहे । धीरे धीरे उसकी बुद्विमता आप में आ जाएगी ।
-आप बीरबल जैसा बनना चाहते हैं तो उसे कल्पना में देखतें रहे आप में उस जैसी चतुरता आ जाएगी ।
-आप अशोक महान को देखतें रहे तो उन जैसे महान बनने लग जाएंगे ।
-आप भक्त सिंह जैसा बनना चाहते हैं । सिर्फ उसे मन में देखतें रहें आप उस जैसे क्रांतिकारी बन जाएंगे ।
-आप जिस व्यक्ति या महापुरुष जैसा बनना चाहते हैं बस उसे कल्पना में देखतें हुए अपने कार्य करते रहे । आपका दिमाग उन जैसा बन जाएगा ।
-ऐसा इसलिए होता हैं क्योकि हमारी मानसिक तरंगे उन के दिमाग से जुड़ जाती हैं उनकी सारी बुद्विमता हमारे में आने लगेगी ।
-परन्तु यह बहुत लंबा प्रोसेस हैं ।
-एक व्यक्ति के माइंड में लगभग 9.50 खरब सेकेंड की रेकॉर्डिंग होती हैं । उसे हमारे दिमाग में डाउनलोड होने में लंबा समय लगता हैं ।
-कई भाई बहिनें पूछते हैं यह अभ्यास कब तक करना हैं । इस का उतर हैं जब तक हम भोजन खाएँगे तब तक यह अभ्यास करना होगा ।
-इसलिए अपना कार्य व्यवहार करते हुए बाबा को या इष्ट को या महान व्यक्ति को मन में सिर्फ देखतें रहे ।
-आप आइंस्टाइन को मन में देखतें रहे तो आप भी उन जैसे बुद्विमान बन जाएंगे ।
-आप विक्रमादित्य, अकबर महान, सिकंदर महान को मन में देखतें रहे तो आप भी उन जैसा बन जाएंगे ।
-आप मुंशी प्रेम चंद को मन में देखतें रहें तो आप भी उन जैसे लेखक बन जाएंगे ।
-आप वेद व्यास को मन में देखतें रहें तो आप भी उन जैसे महा ज्ञानी बन जाएंगे ।
-महान न बनने का कारण यह हैं कि वर्तमान समय जो हमारे विरोधी हैं, हमारी एंटी टाइम तरंगे उन से टकराती रहती है । ऊपर से एकता है, मीठा बोलते है, अपनी डयूटी भी करते रहते है, साथ साथ रहते है परन्तु मन से एक दूसरे से टकराते रहते है ।
-यह टकराव तब खत्म होता है जब हम बुक्स पढ़ते हैं ।
- अगर बुक्स नहीँ पढ़ते तो जरूर किसी न किसी से टकराते रहेगे, वर्तमान के नहीँ तो भूत काल में जिन लोगो ने विरोध किया उन से टकराते रहेगे । इस तरह अपनी शक्ति नष्ट करते रहेगे । यही मनुष्य के पतन का कारण बन जाता है ।
-ईमानदारी से चेक करो क्या इस समय मन में किसी से टकरा रहा हूं । अगर हां तो तुरंत मनसा सेवा पर कोई बुक पढ़ो । हजार बहाने कर के पढ़ने के लिए समय निकलो तथा मन से किसी न किसी को प्यार देते रहो ।
ओम शान्ति..
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