आत्मा क्या है? आत्मा शरीर में कहां स्थित है? क्या हम सभी आत्मा है?

आत्मा क्या है? 

आत्मा एक energy है, point  of light है ज्योति बिंदु है जो शरीर में मस्तक के मध्य में स्थित है आत्मा अजर, अमर अविनाशी है।

हम सभी एक आत्मा ही है इस शरीर को चलाने वाली आत्मा आत्मा ही इस शरीर को चलाती है यह शरीर एक वस्त्र है यह दुनिया एक रंगमंच जहां हम अपने अपने किरदार निभा रहे हैं। हमारे जीवन में दुःख का कारण यही है कि हम अपने आप को शरीर समझते हैं परंतु सच तो यह है हम इस शरीर की मालिक ज्योति बिंदु आत्मा है ।

Aatma Kya hai

जैसे ड्राईवर गाड़ी का नियंत्रण करता है ड्राइवर है और वह ड्राइव करे तो गाड़ी चले ..ड्राइवर के बिना गाड़ी एक ही जगह पड़ी रहेगी। वैसे ही आत्मा इस शरीर रूपी गाड़ी को चलाने वाली ड्राईवर है ।

आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण है!

शरीर पांच तत्वों से बनी है(जल,अग्नि, वायु, धरती और आकाश)

शरीर से आत्मा निकलने के बाद  इसे Dead body (मृत शरीर) घोषित किया जाता है।जिसे हम कहते है मृत्यु हुई।

मृत आत्मा कभी नही कहा जाता मृत शरीर को कहते है। क्योंकि शरीर जड़ है और आत्मा ही उसको चलाने वाली चैतन्य शक्ति है।(energy never dies.)

कुछ भी कर ले , बिना आत्मा के शरीर चलने वाला नही है। 

यह शरीर जड़ है विनाशी है।

चैतन्य आत्मा रूपी सारथी का शरीर रथ है।

आत्मा अमर, अजर ,अविनाशी   है।

आत्मा में  3 सूक्ष्म शक्तिया रहती है

(1)मन (2)बुद्धि (3) संस्कार 

मन- मन वह शक्ति है जिसके द्वारा आत्मा सोचती है, विचार मन्थन  करती है ।हमारा मन दिनभर में avg 40000 से 50000 विचारो को पैदा करता है।मन बुद्धि को फॉलो करता है।मन और बुद्धि का एक दूसरे से गहरा सम्बन्ध है।

बुद्धि- बुद्धि एक तेज शक्ति है जो मन द्वारा किये गये विचारो को जज करना या सही गलय निर्णय लेने का काम करती है।बुद्धि को तीसरा नेत्र कहते है क्योंकि इसमें visivulization की शक्ति है।बुद्धि को अंतर्मन अन्तरात्मा भी कहते है।

सोचना मन का काम है तो समझना बुद्धि का काम है।

संस्कार क्या है? - हम जो भी सोचते हैं ।सोचने समझने के बाद किया गया हर कर्म आत्मा के ऊपर अपना प्रभाव छोड़ता है जिसे हम संस्कार कहते हैं।

संस्कार हमारे व्यक्तित्व का एक हिस्सा बन जाता है और धीरे-धीरे हमारी आदत का स्वरूप ले लेता है। आदतें हमारे मनोस्थिति पर प्रभाव डालती है।

हर आत्मा के संस्कार-स्वभाव अलग अलग होते है।

मुख्य रोल मन का ही है । मन आत्मा की मुख्य शक्ति है । आत्मा में जो भी शक्तिया  है, विचार  है, अच्छी  वा  बुरी संस्कार है सब मन द्वारा प्रकट होती है जिसकी तरंगे बनती है।

शरीर मे आत्मा को स्थान है अर्थात दिमाग के भीन्न भाग  तथा  सारे शरीर की कोशिकाये मन की तरंगों द्वारा नियंत्रित  की  जाती  है । 

अर्थात मन का अच्छा व  बुरा स्तिथि का प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है तथा  शरीर पर आये सब सुख दुख का असर मन ही महसूस करता है । मन और बुद्धि एकदूसरे पर निर्भर है।

इसलिये मन बुद्धि के बारे गहराई से समझना  ज़रूरी है । अगर हम इन्हें सुधार लेते है तो बाकी सब कुछ  अपने आप ठीक हो जाता है । 

चार प्रकार के विचार मन मे चलते है।

1)सकारात्मक

2)आवश्यक

3)व्यर्थ(unwanted)

4)नकरात्मक

मन कितने प्रकार का होता है?

उत्तर- तीन प्रकार का मन होता है 

चेतन मन, अवचेतन मन और अति अवचेतन मन।(conscious mind, sub conscious , unconscious mind. ये सुषुम्ना नाड़ी से जूडा है )

अवचेतन मन- अवचेतन मन वह मन है जो हमारे शरीर की कुछ  क्रियाओ   को हर  समय करता रहता है उन पर नियंत्रण रखता । 

जैसे साँस का चलना, हृदय का चलना, खून का चलना, नाड़ी का चलना । नीद  व  बेहोशी में भी यह मन इन क्रियाओं  पर नियंत्रण रखता है । ये हमारे नियंत्रण से बाहर है ।ये बहुत शक्तिशाली है । इस की शक्ति 90%  है ।

अति अवचेतन मन वह मन है जहां हर जन्म की सूचनायें व  कार्य पड़े रहते है । ये समुन्दर  के समान है । इसकी शक्ति अनंत है ।इसलिये हमे चेतन मन के बारे गहराई से समझना होगा  तथा  हम जानेंगे ये  

दिव्य दृष्टि क्या है?

भृकुटी बीच जहां आत्मा रहती है उसे आज्ञा चक्र कहते है ।

आज्ञा चक्र के उपर हाइपोथेलेमस मे से इलेक्टरों मेग्नेटिक तरंगे निकलती है । इन किरणो की  शक्ति लेसर तरंगों से भी अधिक शक्तिशाली होती है । ये हमारे मन के शुद्ध संकल्पो से उत्पन्न होती है। ये तरंगे स्थूल अवरोधों obstacles को भी पार  कर जाती है ।   

यहां से निकलने वाली तरंगों के द्वारा असंभव जैसे कार्य भी संभव किया जा सकता है ।

 ईथर तत्व द्वारा वह  किरणें  दूर  दूर तक पहुचती है ।जो बहुत दूर घट  रहा है उसे भी अपने नज़दीक देख सकते  है । 

जब राजयोग के ज्ञान द्वारा बुद्धि अर्थात तीसरा नेत्र खुल जाता है तो असंभव भी संभव हो सकता है।


आत्मा चैतन्य अविनाशी और शरीर जड़ ,विनाशी

शरीर की वास्तविकता पांच तत्वों से बनी है।

आत्मा सतोगुणी है।

आत्मा की वास्तविकता सात गुणों से बनती है।

शांति ,शक्ति,प्रेम,आंनद, पवित्रता, सुख और ज्ञान।

आज इंसान कहता है ,सुखी रोटी हो चलेगा लेकिन मुझे शांति चाहिए, खुषि चाहिए।

इसका अर्थ भोजन जो शरीर की आवश्यकता है उससे भी ज्यादा जरूरत शांति है।

अर्थात गाड़ियां, बड़े महल,56 भोग के खाने में उसे वह सुख नही मिलता जो सुख उसे जीवन मे शांति होने से मिलता है।

आत्मा जब अपने वास्तविकता के स्मृति में रहने लगती है तभी वह जीवन से सुख शांति को अनुभव करती है।


आज तक हम अपने आप को शरीर समझते रहे हमें अपने बारे में नहीं पता था आज यह लेख पढ़ने के बाद आपको अपने बारे में पता चल गया होगा हम सभी आत्मा है ज्योति बिंदु आत्मा , हमारा पिता परम पिता परमात्मा भगवान का स्वरूप भी ज्योति बिंदु है ।

आशा करता हूं आपको आज का यह लेख पढ़कर आपका ज्ञान बढ़ा होगा ऐसे ही ज्ञानवर्धक लेख पढ़ने के लिए Free email subscription जरूर करें जिससे आपको सभी जानकारी आपके email पर प्राप्त हो , इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे , अगर आपका कोई सवाल है या आपका कोई सुझाव है तो नीचे कमेंट कर जरूर बताएं धन्यवाद।


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