बच्चों को श्रेष्ट कैसे बनाएं ? -How to make kids perfect

बच्चों को श्रेष्ट कैसे बनाए 

बच्चों को श्रेष्ठ कैसे बनाएं - How to make kids perfect

बच्चों को श्रेष्ठ बनाएं

आज के दौर में माता पिता अपने बच्चों से बहुत उम्मीदे रखते हैंं । वे चाहते है उन के बच्चे हर क्षेत्र में प्रगति करे  

प्रत्येक बच्चे में ढेरो क्षमताएं हैंं । इन क्षमताओं का विकास कैसे करें ताकि बच्चे अपने जीवन में सफल हो सकें । यह जिज्ञासा  प्रत्येक मां  बाप की बनी रहती है ।

आम शिकायत रहती हैं,  बच्चे पढ़ते नहीँ ,  लड़ते झगड़ते रहते हैं,  उन्हे लायक कैसे बनाए ?

प्राय मां बाप बच्चे के जन्म लेने के बाद जब वह 3-4 वर्ष की उम्र के होते है तब उनकी शिक्षा की चिंता करने लगते हैं ।

वास्तव में बच्चा मां के गर्भ से सीखना शुरू कर देता है ।

बच्चा बड़ा हो  कर कैसा  बनेगा उसके   जीवन का आधार गर्भ से शुरू हो जाता है ।

जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह मां जो बोलती है उसे सुनता है समझता है । मां जो सोचती है वह भी समझता है ।

पति पत्नी आपस में जो  बात करते हैं  बच्चा उसे भी समझता हैं ।  अगर दोनो एक दूसरे से प्यार से बात करते हैं तो इसका बच्चे पर बहुत अच्छा असर होता हैं ।

अगर पति पत्नी को गालिया देता हैं,  धमकाता  हैं तो बच्चा भी बड़ा होकर दूसरो को धमकाएगा  ।

घर के दूसरे लोग जो माता के साथ व्यवहार करते हैं उसक भी असर बच्चे पर पड़ता है ।

एक ससुर अपनी बहु से लड़ता था । वह उस से बहुत डरती थी ।  जन्म के बाद बच्चा  भी किसी भी बूढ़े को देखते  ही डरने लगता था ।

एक माता अपनी ननद  से बहुत दुखी थी ।  हर समय अपनी ननद की बुरी आदतो के बारे सोचती रहती थी ।  बच्चे के जन्म लेने के  बाद जैसे ही वह 3-4 साल का हुआ उस में वह सारे अवगुण थे जो उसकी बुआ में थे ।

एक रानी धर्मिक पुस्तके पढ़ती  रही ।  साधना करती रही ।  महान योगियों की जीवनी पढ़ती रही ।  उस से जो बच्चा  पैदा हुआ वह बड़ा हो कर महान  साधु बना ।

वही रानी दूसरे बच्चे के समय राज विद्या सीखती रही ।  अस्त्र शस्त्र सीखती रही ।  उस से जो बच्चा पैदा हुआ वह बहुत अच्छा राजा बना ।

एक माता गीत संगीत सीखती रही ।  उस से जन्म लेने वाला बच्चा एक महान संगीत कार  बना ।

बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं वैसी  सोच मां को रखनी चाहये ।

बच्चा जब पेट में होता है  तो मां के दिल की आवाज सुनता हैं ।  वह मां के फेफड़ो की आवाज सुनता हैं ।  वह मां के पेट में पाचन क्रिया के अंगो की आवाज सुनता है ।

जब बच्चा गर्भ में होता हैं तो मां को पूरा  9 महीने तक एक संकल्प कि  भगवान आप प्यार के सागर हैं इसे सिमरन करती रहे तो एक तो उसे प्रेग्नेंसी के कारण जो इमोशनल तकलीफें होती हैं वह नहीँ होगी ।  दूसरा बच्चा संसार में प्यार ही प्यार बांटेगा  और मां बाप का नाम रोशन करेगा ।

जब बच्चा गर्भ में होता हैं तो वह केवल और केवल मां से जुड़ा रहता हैं ।  वह मां की हर बात सुनता हैं । वह मां की हर बात फालो करता हैं ।

यह प्राकृति ने बच्चे की बेहतरी के लिए कर रखा हैं ।   शिशु की भलाई मां के सिवा कोई नहीँ सोच सकता ।

शस्त्रों में कहा गया है कि  आध्यात्मिक विधि विधान  से एक और व्यक्ति को भी  गर्भ स्थित शिशु से जोड़ा जा सकता हैं ।  परन्तु यह बहुत ही भरोसे का होना चाहिए ।  बाप को भी प्राकृति भरोसेमंद नहीँ मानती ।  इसलिए अगर कोई दूसरा व्यक्ति गर्भ स्थित शिशु से जुड़ना  चाहे तो पहले हजार बार सोच ले ।

जन्म के बाद भी बच्चा सब से ज़्यादा मां से जुड़ा रहता हैं ।  मां की सोच का बच्चे पर सब से ज़्यादा असर होता हैं । वैसे तो व्यक्ति सारी उम्र मां  की  मानता हैं ।

5 साल तक तो बच्चा मां की  सोच से सीधा प्राभावित होता हैं । उसके बाद अपना दिमाग चलाने लगता है ।  6-12 साल की उम्र तक बच्चा हर निर्णय में मां की सहमति चाहता है ।  विफल होने पर मां से प्रोत्साहन चाहता है ।  वह जो भी गलती करता है अनजाने में करता है ।  सभी लोग डांटने लगते हैं ।  बच्चा चाहे कितनी भी गलती कर दे मां को बच्चे का बचाव करना चाहिए और उसे प्यार से समझा दे ।  इस से बच्चे का मनोबल बढ़ता है ।  वह दुबारा  गलती नहीँ करेगा ।

एक लड़का कहता था कि  वह हीरो बनेगा ।  सारे लोग उस पर हंसते थे ।  उसे तंग करते थे ।  सिर्फ मां कहती थी कि वह  हीरो बनेगा ।  उसे बड़ा हौसला मिलता था ।  वह मां की  बात सच्च मानता था ।  वह आगे चल कर नामीग्रामी हीरो बना ।

बच्चे का किसी से झगड़ा हो जाए  कोई गलती हो जाए या उसे पता चले क्या होना चाहिऐ था तो मां की ओर देखता है मां जो कहेगी वही सच मानता हैं ।

मां जो सोचती है। बच्चा वह करता है ।  मां अगर निराश है  तो वह निराश रहेगा ।

मां अगर मन ही मन किसी व्यक्ति से दुखी है और मन में उस पर चिलाती  है तो   बच्चा सच में सभी पर चिल्लाने लगता है ।

मां अगर मन में किसी को गाली  देती  है  तो वह भी गालिया  देने लगता है  ।

बच्चा अगर रूठता हैं तो जरूर मां किसी न  किसी से मन में रूठी रहती है  ।

अगर आप चाहते हैं कि  बच्चा अधिक से अधिक भाषाएँ जाने तो प्रेग्नेंसी के दौरान  दिन में अलग अलग भाषा में लोगो से बात करनी चाहिऐ ।  मां जितनी भाषाओ में दूसरो से बात करेगी  बच्चा वह सब सीख जाता है  ।

माता पिता के झगड़ने व एक दूसरे पर चिल्लाने  का असर शिशु  पर पड़ता है  और मां के रक्त प्रवाह से उस तक तनाव देने वाले हार्मोन पहुचते हैं ।

तेज आवाजे सुनने से शुरू में तो वह शांत हो जाता हैं,  ये आवाजे ज्यादा देर हो तो वह डरने लगता हैं फिर तेजी से पैर मारने  लगता हैं ।

अगर माता संगीत सुनती हैं तो शिशु को शांति मिलती है ।

माता को दिन में  एक दो बार मधुर संगीत सुनना  चाहिऐ । हेडफ़ोन  का प्रयोग न  करें ।   सी.  डी. प्लेयर या टेप रेकोर्डेर गोदी में रखें ।  इस से संगीत बच्चे के कान पर चलता हैं और वह सुनता हैं ।  मां  को. नींद आ जाए तब भी वह सुनता है  ।

मोबाइल से संगीत सुनने के लिए  इसे  गोदी में नहीँ  रखना ।  इसे दूर रखना है  क्योकि इसकी तरंगे तेज होती हैं और शिशु पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं ।

जन्म  के बाद मां बाप का स्पर्श ,  प्यार से बाते करना बच्चे को बहुत शक्ति मिलती हैं । मां को बच्चे को अपनी दिनचर्या बतानी  चाहिऐ कि आज मैं यह यह करने वाली हूं ।  फिर सारा समाचार  सुनाना चाहिऐ ।  नकारात्मक समाचार नहीँ सुनाना ।  इस से बच्चा सीख जाता हैं कि उसे जीवन में क्या करना हैं ।
ओम शान्ति..

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