मन एक रेडियो स्टेशन
हमें अपने मन की शक्ति को पहचानें की जरूरत है। मन की शक्ति से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। इस लेख में हम जानेंगे हमारा मन एक रेडियो स्टेशन की तरह कार्य करता है और यह कैसे काम करता है इसे जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें।
-📻मन एक रेडियो स्टेशन
-मन एक रेडियो स्टेशन है ।
-प्रत्येक मनुष्य का मन एक रेडियो स्टेशन की तरह कार्य करता है ।
-प्रत्येक मनुष्य मेंं प्रसारण और प्राप्ति के केंद्र है ।
-प्रत्येक विचार प्रत्येक भावना की एक फ्रीक्वेनसी है
-अच्छे विचार और अच्छी भावनाओ का मतलब है कि आप सकारात्मक फ्रीक्वेनसी पर हैं ।
-चुम्बक की तरह आप जिस फ्रीक्वेनसी पर हैं उसी तरह के व्यक्ति, घटनाए और परिस्थितिया अपनी ओर खींचने लगते हैं ।
-आप उत्साहित हैं तो उत्साहित लोगो को आकर्षित करते हैं ।
-आप की फ्रीक्वेनसी वह हैं जो आप महसूस कर रहे हैं ।
- अपने विचारो को बदल कर अपनी फ्रीक्वेनसी कभी भी बदल सकते हैं ।
-जब आप सकारात्मक फ्रीक्वेनसी पर होते हैं तो संबंध, सम्पर्क मेंं आने वाले व्यक्ति स्नेही, रोमांचक और सहयोगी होते हैं ।
-अगर नकारात्मक फ्रीक्वेनसी पर है तो दुखी, कुंठित और निराश होते है । तथा जहां भी जाएंगे आप को ऐसे ही लोग मिलेगे ।
-यदि कोई तनाव है, निराशा है, अकेलापन है, कमी है, तो इस का मतलब है कि आप गलत फ्रीक्वेनसी पर हैंं । आप की तरंगे नकारात्मक वातावरण बना रही है । तथा यह काफी लंबे समय से हो रहा है ।
-ऐसी मनोदशा को तुरंत बदलो ।
-प्रेम की फ्रीक्वेनसी सब से शक्ति शाली तरंग है ।
-प्रेम से आप अपने जीवन मेंं हर प्रिय और मनचाही चीज प्राप्त कर सकते है ।
- आज संसार मेंं प्रत्येक व्यक्ति परेशान है । इस का कारण यह है कि लोग प्रेम तो करते है लेकिन कभी कभार करते है ।
-अक्सर वे दिन मेंं सैकड़ो बार प्रेम करना छोड़ देते है ।
-वे इतने लम्बे समय तक प्रेम नहीं करते की प्रेम की शक्ति उन के जीवन मेंं अच्छी चीजे ले आए ।
-एक पल आप किसी प्रिय व्यक्ति से गले मिल कर प्रेम देते है । कुछ ही मिनट बाद आप प्रेम देना छोड़ देते है, -क्योकि आप को जल्दी है और कार की चाबी नहीं मिल रही है । आप चाबी ढूढ़ने लग जाते है ।
-आप अपने बेटे को दुलार रही हैं और अगले ही पल उसे डांट देती हैं क्योकि आप को भोजन बनाना है और गैस खत्म हो गई है । भोजन बनाने की चिंता मेंं लग जाते है ।
-किसी मित्र से आप ठहाके लगा लगा कर हंस रहे है । परन्तु अगले ही पल नाराज हो जाते है क्योकि उसने आप को उधार देने से मना कर दिया ।
-किसी व्यक्ति की बेसबरी से इंतजार कर रहे थे, आप उसे मन से प्यार दे रहे थे । परन्तु उसके आने पर बहुत खर्च हो गया ।
तब आप प्रेम देना छोड़ देते है ।
-जो भी व्यक्ति हमारे साथ रहते हैं या हमारे सम्पर्क मैं आते हैं, उन्हे हम प्रेम देते हैं और प्रेम देना छोड़ देते हैं ।
-जब हमारे मन मेंं प्रेम नहीं होता हैं तो बहाना बनाते हैं हम बहुत बिजी हैं ।
-जिन लोगो से हम प्यार करते हैं, जब वह हमें झिड़क देते हैं, हमारी निंदा करते हैं, छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं तो हम उन्हे प्यार करना छोड़ देते हैं ।
- जब हम प्रेम देना छोड़ देते हैं तो नकारात्मक फ्रीक्वेनसी पर आ जाते हैं और नकारात्मक तरंगे खीचने लगते हैं जिस से हमारे जीवन मेंं अशांति अनुभव होने लगती हैं।
-सदा मन मेंं परमात्मा को या इष्ट को या किसी मन पसंद व्यक्ति, किसी बच्चे, किसी अनजान व्यक्ति, किसी वस्तु को मन से प्यार करते रहो । इस से आप सदा प्यार की फ्रीक्वेनसी पर रहेंगे और मनचाही सभी चीजे आप के जीवन मेंं आने लगेगी ।
-ऐनटीना विद्युत चुम्बकीय तरंगो को प्रसारित करने या ग्रहण करने के काम आता हैं ।
-ऐनाटीना विद्युत चुम्बकीय तरंगो को विद्युत संकेतों मेंं बदल देता हैं ।
-ऐनटीना रेडियो, रडार, दूर दर्शन, वायरलेस और मोबाइल आदि का प्रथम और अतिम अवयव हैं ।
-यह एक धातु का टुकड़ा हैं जो विद्युत तरंगो का सुचालक हैं।
-अलग अलग ऐनटीना क़ी अलग अलग शक्ति होती हैं ।
-ऐनटीना 1 किलोमीटर से लेकर लाखो किलो मीटर तक तरंगे प्रसारित और ग्रहण कर सकता हैं ।
-मानसिक ऐनटीना
-हमारे दिमाग मेंं भी एक ऐनटीना हैं ।
-हमारे सिर मेंं पतालू मेंं एक ऊर्जा चक्र हैं जिसे सहस्त्रार चक्र कहते हैं ।
- इस सहस्त्रार चक्र मेंं एक हजार पंखड़ियों वाला कमल का फूल हैं ।
-इन पंखड़ियों मेंं बल्ब के प्रकाश की तरह टिमटिमाहट होती रहती हैं ।
-ये पंखड़ियों और कुछ नहीं एक हजार मानसिक ऐनटीने हैं जो जलते बूझते रहते हैं ।
-यह एनटीने रिसिवर का भी काम करते हैं ।
-पूरे ब्रह्मांड मेंं हमारे बारे कोई कुछ भी बोलता या सोचता हैं हमारा ऐनटीना उसे ग्रहण कर लेता हैं ।
-हम भी किसी के बारे सोचते हैं तो इसी एनटीना के माध्यम से हमारे विचार उस व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं ।
- एंटिना से होते हुए विचार हमारे नाक मेंं से निकल कर आकाश मेंं जाते हैं ।
-नाक मेंं एक छोटा सा छेद हैं जहां नाक की हड्डी बढ़ जाती हैं और साईंनस का ऑपरेशन करवाते हैं, वहां से तरंगे बाहर निकलती हैं और यहीं से रिसीव होती हैं ।
-नाक का यह भाग हमारे गले, आंख और कान से भी जुड़ा है और उनसे प्राप्त संदेशो का भी प्रभाव होता हैं ।
-हमारा दिमाग एक रेडियो स्टेशन क़ी तरह काम करता हैं ।
- यह बात बहुत कम लोग जानते हैं । यही कारण हैं कि सारा संसार भगवान को अपने अपने ढंग से याद करता हैं परन्तु मनचाही प्राप्ति नहीं होती ।
-राजयोगी भी जिस योग का अभ्यास करते हैं वह बहुत सहज हैं,भगवान स्वंय उन का मार्ग दर्शन कर रहे हैं फिर भी वह निरंतर योगी नहीं बन पा रहे हैं। वह भी अनेको परेशानियों से जकड़े हुए हैं ।
-सर्व प्राप्ति न होने का कारण यह है कि वह यह नहीं जानते कि दिमाग से संदेश कैसे प्रसारित और ग्रहण होते हैं ।
-जब हम अपने को आत्मा समझ परमात्मा के बिंदु रूप को देखतें हुए अपना मन परमधाम मेंं एकाग्र करते हैं और भगवान के किसी एक गुण जैसे कि आप प्यार के सागर हैं इसका सिमरन करते हैं तो इस से दिमाग मेंं बल बनने लगता हैं ।
-इस बल के प्रभाव से सहस्त्रार चक्र मेंं एक ऐसा एंटिना हैं जो भगवान से जुड़ा हुआ हैं वह खुल जाता है और हम भगवान से शक्ति लेने लगते हैं । जितना ज्यादा देर इस गुण का सिमरन करेगे परमधाम की शांति और अन्य शक्तियां जो हम नहीं जानते हैं वह भी अनुभव होने लगेगी ।
-बाबा आप प्यार के सागर हैं इस शब्द का दस हजार बार सिमरन कर लेते हैं तो हमारा मानसिक एनटीना भगवान से इतनी शक्ति खींच लेता हैं जिस से हमारे मन पर एक दिन किसी भी नकारात्मकता का असर नहीं होता और हमें बहुत अच्छी अनुभूति होती हैं । एक अजीब तरह का अनुभव होता हैं ।
-इस अनुभव को आप खुद करेगे तब समझ पाएगे ।
-इस का अनुभव करने के लिए परमात्मा को कल्पना मेंं देखते हुए लिख लिख कर अभ्यास करना है कि भगवान आप प्यार के सागर हैं ।
-आमतौर पर लोग चलते फिरते ये अभ्यास करते हैं और समझते हैं दस हजार बार सिमरन कर दिया हैं । परन्तु हकीकत मेंं 1000 के आसपास की संख्या मेंं अभ्यास कर पाते हैं । कई तो 100 बार से ज्यादा नहीं कर पाते और समझते हैं बहुत हो गया ।
-जबानी अभ्यास करते हैं तो मन चीटिंग कर जाता हैं , क्योकि मन इधर उधर चला जाता हैं ।
-कई लोग माला फेरते हैं उस मेंं भी मन चीट करता हैं । कुछ दिनो तक अभ्यास करने के बाद अंगुलिया अपने आप माला फेरती रहती हैं जैसे बहिनें स्वाटर बुनते समय बिना ध्यान दिए सलाइयाँ चलाती रहती हैं । हम साइकल चलाते हैं और पैर अपने आप चलते रहते हैं यह पता नहीं चलता कि कितनी बार पैडल घुमाया हैं ।
-लिख कर याद करने से ये फायदा है कि जैसे मन कुछ और सोचेगा तो लिखना बंद हो जाएगा ।
- लगभग 6 मास तक लिख कर अभ्यास जरूर करें। फिर आप का संस्कार बन
जाएगा और बिना लिखे भी अभ्यास कर सकेगे ।
-अपने को बिंदु समझने से हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो जाते हैं जिस से हमें किसी की देह नहीं खींचती ।
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- लगभग 6 मास तक लिख कर अभ्यास जरूर करें । फिर आप का संस्कार बन
जाएगा और बिना लिखे भी अभ्यास कर सकेगे ।
- अपने को बिंदु समझने से हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो जाते हैं जिस से हमें किसी की देह नहीं खींचती ।
-बिंदु रूप समझने से सातों ऊर्जा चक्र चार्ज होने लगते हैं ।
-बिंदु रूप समझने से हमारी कर्मइन्द्रिया, हमारा मन, बुद्वि और संस्कार हमारा कहना मानने लगते हैं ।
-बिंदु रूप समझने से हमारे साथी हमारा कहना मांनने लगते हैं ।
- अगर हम तीन घंटा बिंदु रूप का अभ्यास कर के किसी कड़े संस्कार वाले व्यक्ति से बात करें तो वह भी हमारा कहना मानेगा और जो लोग आश्रम पर नहीं आते हैं वह भी आने लगेगे ।
-कोई आप के सामने अभद्रता से पेश आ रहा हैं आप धीरे धीरे मुख से बोले आप शांत हो शांत हो आप स्नेही हो स्नेही हो उस पर जादू कि तरह असर होगा ।
-हर पल यह भाव रखो मैं निराकार हूं मैं हवा की तरह दिखता नहीं दिखता नहीं । इस अभ्यास से बहुत अच्छा महसूस होगा ।
-बिंदु रूप समझने से हमारा सूक्ष्म शरीर 5 किलो मीटर प्रति सैकिंड की गति से दौड़ने लगता हैं जिसके प्रभाव से स्थूल शरीर धरती की चुम्बकीय शक्ति को पार कर जाता हैं और हमें हल्का हल्का लगने लगता हैं । हमें ऐसे लगेगा जैसे उड़ रहे हैं । कई योगी तो सच मुच मेंं धरती से 2-3 फिट ऊपर उठ जाते हैं ।
-जितना ज़्यादा बिंदु रूप मेंं टिके रहेगे आप आगे की तरफ झुकते जाएंगे । यह पृथ्वी के चुम्बकीय बल से बचने के लिए हमारा दिमाग करता है क्योकि अगर हम आगे न झुके तो रीढ़ की हड्डी टूट सकती हैं ।
-पढ़ाई करते समय या गहरी सोच मेंं भी विद्यार्थी वा व्यक्ति अनजाने मेंं आगे झुकते जाते है ।
-किसी के प्रति सत्कार या प्यार की भावना आने से भी हम उनके आगे झुक जाते है, क्यो की सत्कार के संकल्प से वही बल पैदा होता जो बिंदु समझने से होता है ।
-आप ने ऐसे सिद्व पुरुषो के बारे मेंं सुना होगा जो एक ही समय पर दो जगह पर विराजमान हो जाते थे ।
-उनके शिष्य जब याद करते थे तो वे वहां पहुंच जाते थे ।
-लाहिड़ी बाबा अपने शिष्यों के पास पहुंच जाया करते थे जो हजारो मील दूर होते थे। वह उन से बात करते रहते थे । उनके शिष्य उसकी आवाज सुनते थे। बातचीत करते थे । परन्तु वह शिष्यों को दिखाई नहीं देते थे ।
-लाहिड़ी बाबा के शिष्य कहते थे गुरु जी आप दिखाई क्यो नहीं देते । तब बाबा कहते थे आप की बुद्वि पूरी शुद्ध नहीं है इसलिए मैं तो तुम्हे देख सकता हूं परन्तु तुम मुझे नहीं देख सकते ।
-लाहिड़ी बाबा ने ये शक्ति लगभग 40 वर्ष की तपस्या के बाद प्राप्त की और इसके लिए उन्होंने 18 से 20 घंटे की साधना हर रोज की थी ।
-कभी कभी आप सब का मन होता होगा कि काश मैं भी फ़रिश्ता बन कर जहां जाना चाहू वहां आ और जा सकू ।
- ऐसा हरेक व्यक्ति कर सकता है ।
-हमारे दिमाग के सहस्त्रार चक्र मेंं एक एनटीना है। जिसे अक्टिवेट करना है । इसके लिए थोड़ा अटेन्शन और अभ्यास की जरूरत है ।
-चलते फिरते उठते बैठते सिर्फ एक संकल्प रिपीट करना है मैं फ़रिश्ता हूं फरिश्ता हूं । मैं प्रकाश का शरीर हूं । मेरी स्थूल देह के अंदर मेरा सूक्ष्म प्रकाश का शरीर है ।
-जैसे ही हम अपने को फ़रिश्ता समझते है । इस संकल्प को रिपीट करते है तो हमारे दिमाग मेंं व स्थित केंद्र/आंन्टीना कार्य करने लगता है। उसमें से ऐसी तरंगे निकलती है जो वह हमारे सूक्ष्म शरीर को स्थूल देह से अलग करने लगती है ।
-अगर हम तीन घंटे योग का अभ्यास करते है या लगभग 10 हजार संकल्प रिपीट कर लेते है तो हम अपने को इस शरीर से अलग महसूस करते है। हमें हल्का-हल्का महसूस होता है । ऐसे लगता है जैसे हम उड़ रहे है ।
-भगवान के बिंदु रूप को सामने देखतें हुए अगर हम यह अभ्यास दस हजार घंटे कर लें तो हम सच मुच मेंं देह से जब चाहे अलग हो सकते है और जहां चाहे वहां जा सकते हैं । आप लोगो से बातचीत कर सकेगे परन्तु उन्हे दिखेंगे नहीँ ।
-जैसे ही मन मेंं संकल्प करते हैं की मैं फरिश्ता हूं तो हमारे दिमाग रूपी आंन्टीना से ऐसी तरंगे प्रवाहित होती हैं जो हमें सूक्ष्म लोकों से जोड़ देती हैं ।
-हम ब्रह्मापूरी, विष्णु पूरी, शंकर पूरी या और जो भी अदृश्य लोक हैं उनसे जुड़ जाते हैं। उन लोकों मेंं हो रहे कार्य कलापों को पकड़ने लगते हैं। वहां से प्रेरणाएं प्राप्त करने लगते हैं । उन लोकों को समझने लगते हैं ।
-इसी अभ्यास से तपस्वी दूर स्थित ग्रहो की जानकरी खोज पाए जो विज्ञान आज खोज रहा हैं ।
-जैसे ही हम फरिश्ता रूप का अभ्यास करते हैं हम उन योगियों से भी जुड़ने लगते हैं जो इस समय तप कर रहे हैं, वह चाहे हिमालय पर हो या और कहीं रह रहे हो ।
-जैसे ही हम फ़रिश्ता रूप का अभ्यास करते हैं हम विश्व के श्रेष्ट व्यक्तियों से जुड़ने लगते हैं जो मदर टेरेसा की तरह समाज निर्माण के कार्यो मेंं लगे हुए हैं ।
-यही अभ्यास अगर हम 6 से 8 घंटे करें तो हम चलते फिरते फ़रिश्ते दिखेंगे लोगो को साक्षात्कार होने लगेगे ।
ओम शान्ति..
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