मानसिक शक्ति-संकल्प
मानसिक शक्ति -संकल्प
-मुख से बोले जाने वाले शब्द ज्यादा शक्तिशाली नहीं होते ।
-इन शव्दो के पीछे जो भावना होती है उसका प्रभाव पड़ता है । शक्ति भावना से आती है ।
-यह भावना जितनी शुध्द होती है, उतनी ही शक्तिशाली होती है । इसी शक्ति से हम ईश्वर की अनुभूति करते है तथा स्वय भी श्रेष्ट बनते है ।
-दूसरों को सुधारने में जितनी कठिनाई पड़ती है । स्वय को सुधारने में उस से भी अधिक कठिनाई होती है ।
-हम जो कुछ भी बोलते है, संकल्प करते है वा कर्म करते है, उस के पीछे अंतरात्मा के गहन मर्म स्थल से निकलने वाली दिव्य संवेदनायें मिली रहती है ।
-जो शब्द बोलते है उनसे ध्वनि तरंगे बनती है ।
-जब अंतरात्मा और जो बोल बोलते है वह एक समान होते है तो प्रचंड शक्ति पैदा होती है ।
-इस से हमारा व्यक्तित्व प्रभावित होता है ।
-तब हम समीपवर्ती तथा दूरव्रती वातावरण को किसी ना किसी रुप से प्रभावित करते है ।
-उच्चारण से जो ध्वनि तरंगे निकलती है वे स्वय को व समस्त वातावरण को प्रभावित करती है ।
-संगीत से सभी प्रभावित होते है । जब स्वर लहरें उल्लास से भरी होती है तो सुनने वाले प्राणियों, जड़ वा चेतन पर अढ्भुत हलचल उत्पन्न करती है ।
-मन मेंं संगीत जैसे मधुर संकल्प जब पैदा होते है़ तब तन, परिवार, समाज और संसार मेंं सुखद परिवर्तन आता है़ ।
मानसिक बल -संकल्प
- मानव शरीर में कम्पन होता रहता है वह अगर सुना जा सकें तो एक अढ्भुत संगीत है जिसे अनहद बाजे कहा गया है ।
- सभी उर्जा चक्र और सहस्त्रार केन्द्र दिव्य संगीत के आधार है । यहां जो एनर्जी प्रवाहित होती रहती है उस से मधुर संगीत उत्पन्न होता है जिसे आनंद कहते है । यह किसी किसी को जो बहुत अच्छा योग का अभ्यास करते है उन्हे अनुभव होता है। 99% योगी बस वर्णन करते है अनुभव नहीं कर पाते ।
- जो हम साँस लेते है, बाई तथा दायीं नाक से, इस में स्थित इडा और पिँगला नाडियो में जो ऊर्जा बहती है उस से भी दिव्य संगीत बजता रहता है ।
-रीढ़ की हड्डी में लगे तंतुओ से जो शरीर के भिन्न भिन्न भागो को जोड़ते हैं उन से भी सूक्ष्म संगीत पैदा होता रहता हैं ।
-स्थूल में संगीत को मधुर बनाने लिये उँगलियों का संचालन एक विशेष विधि से किया जाता हैं ।
- ऐसे ही हम विचारो को बदल कर शरीर के आन्तरिक अंगो से विभिन प्रकार का संगीत उत्पन्न कर सकते हैं ।
-उपरोक्त संगीत विचारों अनुसार बदल जाता है । यदि विचार सात्विक है तो इस संगीत का आवाज़ अलग होता है । यदि विचार नाकारात्मक है तो संगीत का आवाज़ अलग होता है । जो हमारे स्वास्थ्य का आधार बनते है ।
--किसी के दुख में दुखी हो जाना, अनजाने में उसके दुख को और बढा रहे हैं । आप के मन में हमदर्दी उमड़ती हैं, कहते हैं, बेचारा कितना दुखी हैं ।
ईश्वर ऐसा क्यों करता हैं । उसके प्रति बार बार बेचारा , दुखी, बदनसीब, परेशान जैसे शब्द दिमाग में रखने से हमारे कम्पन बदल जाते है जिस से वह भी प्रभावित होता है और उसका दुख बढ़ता है तथा आप भी दुखी होने लगते है ।
-संकल्पों से ईथर में जो कम्पन पैदा होता है वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सतह पर इक्ठे होते रहते है । जिस से वह शक्तिशाली बन जाते हैं । शक्तिशाली होने के बाद वे अन्य कम्पनो को अपनी तरफ़ आकर्षित करते है अथवा निर्बल होने पर दूसरों की ओर खिंच जाते है ।
-ये संकल्प कमजोर होने पर भी ऐसे चुंबकत्व का निर्माण करते है जो उन शव्दो के साथ जुड़ी हुई चेतनाओं अनुसार दूसरे मनुष्यों को प्रभावित कर सके ।
- संकल्पों से उत्पन्न ध्वनि एक प्रत्यक्ष शक्ति है ।
-ध्वनि के फोटो लिये जा सकते है तथा ध्वनि के आधार से किसी का फोटो बनाया जा सकता है ।
-शब्दों से उत्पन्न ध्वनी एक शक्तिशाली पदार्थ है ।
-जिस प्रकार अणु का, बिजली का, ताप का उपयोग होता है वैसे ही शब्द शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है ।
-शरीर की खुराक भोजन है । हम जो कुछ भी खाते है उस से शरीर को शक्ति मिलती है तथा उस वस्तु की तासीर अनुसार हमारे मुख से खुशबू या बदबू आती है । प्याज, लहसुन, मूली, हींग खाने से मुख से अलग अलग दुर्गंध आती है ।
-इलायची, सौंफ आदि खाने से उसकी सुगंध मुख से आती है ।
-कोई व्यक्ति चाहे कितना छिपाये उसके मुख से सुगंध एवं दुर्गंध सब बताती है कि क्या खाया है ।
-ऐसे ही हमारे विचार भी भोजन है । हम जहां जाते है, हमारे विचार सब को प्रभावित करते है, चाहे हम बोले या ना बोले, लोगो को सब पता चलता रहता है कि हमारे मन में किस तरह के विचार चल रहे है ।
-इसलिए हर पारिस्थिति मेंं सदैव मन मेंं श्रेष्ट विचार करते रहो
मानसिक शक्ति -संकल्प
-मुख से जो हम साधारण शब्द बोलते रहते है उन से बहुत अधिक शक्ति खर्च होती रहती है । जैसे हम कहते है आज आप ने क्या खाया, क्या पिया, देश विदेश के समाचार, सामाज मे हो रही अच्छी बुरी घटनाये l
-साधारण बातचीत, माखौलबाजी, मजाक प्रायः करते रहते है, तब मखोलबाजी को सिध्द करने लिये पीछे अनेक शब्द मन मे घूमते रहते है ।
-ज्यादातर प्रवचन करने वाले दूसरों को सदुपदेश देने में प्रवीणता प्रकट करते है । वे विचारो को लच्छेदार शव्दो मे गूंथ कर ऐसा बना देते है जो कानो को बड़ा मीठा लगते हैं । परंतु ये लोग अन्दर से खोखले होते हैं । उनके मन मे चलता रहता है जैसा बोल रहा हूं वैसा मेरा जीवन तो नहीं ।
-हम अपनी मनोदृष्टि के अनुसार दूसरों की भावनाओ का अर्थ लगाते है ।
-मुख और आँखो की परिधि सीमित है ।
-कान दूरी से सुनते है और उसी अनुसार शव्दो के अर्थ लगाते है ।
-आँखो की शक्ति से मुख पर छाई आकृति को देख कर अर्थ लगाते है कि दूसरे के मन मे क्या चल रहा हॆ ।
-मन मे उत्पन्न होने वाली विचार तरंगे बहुत दूर तक जाती है । जितना व्यक्ति का चरित्र और खानपान शुध्द है उसका मनोबल उतना ही शक्तिशाली होता है ।
-शुध्द संकल्पों द्वारा गिरो को उठा सकते है तथा उठो को बढा सकते है । उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती । अनेकों को श्रेष्ट पथ पर लें जाने की क्षमता काम करने लगती है ।
-ऐसी क्षमता उन लोगो मे आती है जिन के स्थूल शरीर के क्रिया कलाप तथा सूक्ष्म चिंतन सदभाव का हो ।
-जिंदगी मे दो तरह के लोगो से हमारा वास्ता पड़ता है । एक जो हमारे से छोटे होते है । हम उनको डाँट डपट करते रहते है । उन को आगे नहीं बढ़ने देते अगर वह हमारे कहे अनुसार नहीं चलते ।
ज्यादातर हम डरते है कि कहीं वह मेरी जगह ना लें लेंवे । इसी तरह से दूसरे वे लोग है जो पदवी मे या धन दौलत मे हम से बड़े है । हम उनसे डरते रहते है कि कहीं हमारे कार्यों मे रुकावट न डाल दे । इसलिये हम चापलूस बने रहते है उन की हर डाँट डपट सहन करते है और सारी उम्र उनकी जी हजूरी करते रहते है ।
-इन दोनो ही प्रकार के व्यक्तियों के लिये दया का भाव रखो । आप का यह भाव उन्हे आगे बढ़ने मे बल देगा । जब हमारे मे दया भाव होता है तो हम किसी से प्रभावित नहीं होते सदा देने की भावना रहती है । इस समय सब मनुष्य किसी ना किसी अपनी कमी के कारण परेशान है, चाहे वह छोटा हॆ या बड़ा है ।
-रोगॊ का उपचार एवम शारीरिक शक्ति बढ़ाने लिये सोना, चाँदी वा तांबा आदि की भस्म बना कर उनका सेवन किया जाता है ।
-ऐसे ही विषों का भी बड़ा लाभ बताया गया है, पर यह सम्भव तभी होता है जब उन विषों को विधान पूर्वक शुध्द किय जाये ।
-ऐसे ही संकल्प एक मूल पदार्थ है इसे ही शुध्द करना है । शोधित होने पर वह अमृत बन जाता है तथ विकृत होने पर ज़हर बन जाता है ।
-प्रायः लोग शब्द तो अच्छे बोलते है परंतु उनके संकल्पों मे शुद्धता नहीं होती जो अध्यात्म मे उच्चता प्राप्त करने लिये होनी चाहिये ।
-अगर योग मे अनुभूति नहीं होती, योग अच्छा नहीं लगता तो समझो अभी आप के संकल्पों मे शुद्धता नहीं है जितनी होनी चाहिये ।
--संकल्पों की श्रेष्टठता ही मानव जीवन की उन्नति का आधार है ।
-विचारो का स्तर सकारात्मक व नाकारात्मक जैसा भी होगा, व्यक्तित्व भी वैसा ही ढल जायेगा ।
-नाकारात्मक विचार मनुष्य का सब से बड़ा आन्तरिक शत्रु है । संसार मे इस से बढ़कर बुरा दुश्मन और कोई नहीं है ।
-बाहरी शत्रु मात्र आर्थिक व शारीरिक हानि पहुंचाते है और यदि सावधानी रखी जाये तो उन से लोहा लिया जा सकता है ।
-आन्तरिक दुश्मन तो अंतराल मे पनपने और दिमाग मे उमड़ने वाले हेय विचार हैं । जिसे असावधान व्यक्ति ना तो पहचान सकता हैं और ना ही उनसे बचने का प्रयास ही करते हैं । इसे हैंडसम डेविल कहा जाता है । यह सुंदर सपने दिखाते है और अपने मोहपाश मे बांध कर पतन के गर्त मे जा धकेलते है । इन्हे दैत्य की श्रेणी मे रखा गया है ।
-हर मनुष्य मे 'केजीटो ' नाम की एक विशेष उर्जा विचारो से प्रवाहित होती है । यदि इस उर्जा को सकरात्मक रुप दिया जाये तो व्यक्ति अपने विराट रुप की झांकी आसानी से बना सकता है ।
-समान्य से असामन्य बना सकने वाला जीवन तत्व इसी मे विद्यमान है । चरित्र का निर्माण इसी से होता है ।
-संसार मे ऐसे अनेकों व्यक्ति है जिनके विचार बड़े महान और आदर्श होते है किंतु उन के कार्य उसके अनुरूप नहीं होते । विचार पवित्र और कार्य अपवित्र तो व्यक्तित्व की श्रेष्टठता कहाँ हुई । कोई ऊपर से बड़े सत्यवादी, आदर्शवादी दिखते हैं किंतु भीतर कलुषित विचारधारा ही प्रवाहित हो रही हो तो ऐसे व्यक्ति खरे व्यक्ति नहीं है ।
-ऐसे दोहरी स्थिति का मूल कारण यही है कि कीजीटो नाम की एनर्जी जो हम सूक्ष्म स्तर पर नाकारात्मकता रखते है उस से नष्ट हो जाती है । जिस से कथनी और करनी मे अंतर आ जाता है ।
-सूक्ष्म नाकारात्मकता अर्थात यह विरोधी है, अमुक समय सहयोग नहीं दिया, मेरे प्रति उल्टा बोला, मेरे से पूछा नहीं, मेरे को प्रणाम नहीं किया, मेरा मान नहीं किया । मेरे मे आलस्य है, मै अनपढ़ हूं, मुझे याद नहीं रहता, मेरे पास साधन नहीं है, मेरा योग नहीं लगता, धन की कमी है, मेरे पर हुक्म चलाता है, हर बात मे टोका टाकी करता है , मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है । ऐसे अनेकों सूक्ष्म चीजे विचारो की उर्जा नष्ट कर देती है जिस से कथनी करनी मे फर्क आ जाता है ।
-नकारात्मक विचारो से बचने के अनेकों उपदेश, उपाय फेल हो जाते है । इस से बचने का एक ही उपाय है हर समय कुछ ना कुछ नया पढ़ते रहो ।
-अनियमित टूटे फूटे विचारो मे बल वा वेग कम होता है । उन का संप्रेषण थोड़ी दूर किया जा सकता है और उन मेंं प्रभावित करने की शक्ति भी बहुत कम होती है ।
-देर तक एक ही विचार मस्तिष्क मे बना रहे तो उस से बल उत्पन्न होता है । प्रबल अवरोधों से टकरा कर भी टिके रहने की शक्ति आ जाती है ।
-अम्प्लीफायर के माध्यम से हल्की सी आवाज़ को इतना शक्तिशाली बना दिया जाता है कि उसे हजारो मील दूर बैठे लाखो लोगो को सुनाया जा सकता है । सूक्ष्म शुध्द विचारो से ऐसी ही शक्ति प्राप्त होती है ।
-आलस्य, अस्तव्यस्तता , अवसाद, उपेक्षा और उत्साहीन मनो भूमि मे शक्ति हीन विचार ही पैदा होते है । समान्य वक्ताओं की मनोभूमि ऐसी ही होती है । सुनने मे सुहावने लगते है परंतु उनकी प्रभाव गति नही होती । लोगो का आचरण वही रहता है ।
-विचारो की शक्ति आचरण से जुड़ जाने पर वह प्रभावपूर्ण हो जाते है । अगर दुर्भावनाओ से जुड़ी हुई हो तो पतन के लिये आकर्षित करने वाला प्रभाव पैदा करती है ।
-एकाग्रता और मनोयोग तभी सम्भव है जब अपनी आन्तरिक रुचि जुड़ जाये । श्रेष्ट लक्ष्य के लिये अपनी आन्तरिक रुचि श्रेष्ट बनाओ । अगर रुचि जाग गई तो विचार वा बोल शक्ति अपना चमत्कारी रुप दिखायेगी ।
-जिन लोगो की मनोदशा सड़ी हुई होती है, वे कभी एक चीज़ पर विचार करते है तो कभी उसकी विरोधी चीज़ पर विचार करते है तथा उनके परिणाम एक दूसरे से टकराते रहते है । बेमेल और विरोधी परिस्थितियाँ वा विचार व्यक्ति के जीवन को असहवा बना देती है ।
-इसलिये सदैव शुध्द विचार ही मन मे रखो तभी सच्ची सुख शांति अनुभव होगी ।
-बाबा आप प्यार के सागर हैं यह सब से शुद्ध और शक्तिशाली विचार है़ ।
ओम शान्ति..
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