ईष्र्या क्या है? ईष्र्या के कारण क्या है? और ईष्र्या से बचने के उपाय क्या हैं?
आजकल स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ रही है । तन को स्वस्थ रखने के लिए तथा बीमारियों से मुक्त रहने के लिए योगासन , प्राणायाम , हठयोग , ध्यानाभ्यास , प्राकृतिक चिकित्सा , सामूहिक परामर्श , सकारात्मक चिन्तन इत्यादि विधियों का सहयोग ले रहे हैं ।
शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न होने पर या उसके लक्षण महसूस होने पर हम तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं । उसकी दी हुई दवाइयाँ लेते हैं , परहेज करते हैं तथा जल्दी से जल्दी स्वस्थ होने की कोशिश करते हैं क्योंकि हम यह अनुभव करते हैं कि हमारे बीमार होने से हमारी सारी दिनचर्या , काम - धंधा प्रभावित होगा । किंतु अगर मन बीमार हो जाये तो उसका पता ही नहीं चलता ।
अगर मनुष्य का सिर , दर्द से फटा जा रहा हो तो उसका पूरा परिवार आधी रात को ही उसे उठाकर अस्पताल ले जायेगा और वह व्यक्ति भी अस्पताल पहुंचने का इच्छुक होगा किंतु यदि घृणा , क्रोध , ईर्ष्या से उसका दिलो - दिमाग फटा जा रहा हो तो वह किसी ध्यानी या ज्ञानी के पास नहीं जायेगा ।
पूरा जीवन इंसान अपने मन की बुराइयों के साथ जीता है किंतु कभी उन ज़हरीली बुराइयों के इलाज की बात नहीं सोचता । आप अपने जीवन , अपने साधनों से संतुष्ट हैं , प्रसन्नतापूर्वक जीवन जी रहे हैं । एक दिन आपका एक स्कूल का दोस्त आपसे टकरा जाता है । आप उसके सूट बूट , ठाठ - बाट को देखते हैं । उसकी गाड़ी का मॉडल आपको अपनी गाड़ी से महंगा लगता है ।
वह आपसे अधिक ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित है । आप सोचते हैं कि यह तो स्कूल में , पढ़ाई में हमेशा मुझसे पीछे रहा , कभी इसके इतने अच्छे अंक नहीं आये , फिर यह इतना आगे कैसे बढ़ गया । आपके मन में असंतुष्टता का बीज उत्पन्न हो गया । अभी तक जिन साधनों को देख आप स्वयं को प्रसन्न अनुभव करते थे , अब वही साधन आपकी अप्रसन्नता का कारण बन गये । दिन भर यही चिन्तन चलने लगा । रात को भी यही विचार आपको काटते रहे ।
अब मान लो , आपका वह दोस्त आपके पडोस में आकर रहने लगे तो क्या होगा ? आपका हँसता - खेलता , खुशहाल , संतुष्ट जीवन दुखमय बन जायेगा । आपका हर दिन उसे देखने में , उससे तुलना करने में , उससे आगे जाने की ऊहापोह में बीतेगा । रोज - रोज मन की यह कसमसाहट आपको तनाव से भर देगी ।
अब यह कौन - सा रोग है जो व्यक्ति के सुकून को छीन लेता है । यह तन का नहीं , मन का रोग है जिसका नाम ईर्ष्या है लेकिन व्यक्ति इसे पहचान नहीं पाता । ऊपर से देखने में तो वह स्वस्थ लग रहा है पर मन की इस बीमारी को नहीं देख पा रहा है । अब वह इसका इलाज कैसे करे ? मन की इस व्यथा से कैसे मुक्ति मिली?
ईर्ष्या के कारण
देखने में आता है कि किसी अनजान व्यक्ति के आगे बढ़ने पर ईर्ष्या नहीं आती, जब व्यक्ति अपने आस - पास के लोगों या अपने पेशे से जुड़े लोगों को या अपने से छोटे या अपने बराबर वाले को अपने से अधिक पाता है तो वह खुद को छोटे अनुभव करने लगता है और ईर्ष्या में जल उठता है।
यह प्रक्रिया केवल सक्रिय होती है जब वह अपने आसपास के छोटे या समकक्ष व्यक्ति को प्रगति पथ पर बढ़ते हुए देखता है। यह प्रगति किसी भी क्षेत्र में हो सकती है धन, रूप, पद, मूल्य, कला, आध्यात्मिक उपलब्धियां आदि।
एक इंजीनियर को इस बात से ईर्ष्या नहीं होगी कि अमुक व्यक्ति कल तक तो एक साधारण नेता था, आज वह एक प्रतिष्ठित मंत्री बन गया किंतु इस बात से वह अवश्य परेशान हो सकता है कि कल तक उसके अधीन काम करने वाला उसका जूनियर इंजीनियर आज उससे आगे बढ़कर इतने बड़े पद पर कैसे पहुँच गया।
आखिर ऐसा क्यों होता है? जब आपके कर्बी लोगों में कोई आगे बढ़ता है तो ईर्ष्या क्यों होती है? सामने वाला व्यक्ति तो अपनी दुनिया में खुश है, उसे आपके मन में चल रहा संकल्पों का भान भी नहीं है और आपने उसे नीचा दिखाने के प्रयास में अनजाने में उसे अपने से अधिक महत्वपूर्ण स्थान दे दिया।
आपने मान लिया कि वह कहीं अधिक योग्य है, विशेषता संपन्न है, आप उसके आगे कुछ नहीं हैं। आपने अपने मन की सारी शक्ति, सारा संकल्प, इतना महान कदम अनजाने में ही उसे अर्पित कर दिया।
ईर्ष्या के लक्षण और परिणाम
कैसे जानें कि हमारे अंदर ईर्ष्या है? जैसे जब बुखार आता है तो शरीर की नाड़ी की गति बढ़ जाती है, हम स्वयं को थका - थका, शक्तिहीन अनुभव करते हैं, हम तंबाकूमीटर से शरीर के तापमान की जाँच करते हैं कि कहीं
ईर्ष्या से बचने के उपाय ईर्ष्या से कैसे मुक्ति पायें ?
कुछ सामान्य बातों का पालन करने से एवं राजयोग के गहन अभ्यास से इस मनोरोग से मुक्ति पाई जा सकती है ।
1. ईर्ष्या को ऐसे देखें जैसे मन में गंदा नाला बह रहा है जिसकी दुर्गन्ध आपके मन को बेचैन कर रही है ।
2. मन की लगाम अपने हाथ में रखें । जब भी व्यर्थ संकल्प आयें , मन को चेतावनी दें कि अगर उसने ईर्ष्या करना बंद नहीं किया तो उसे कड़ी सजा मिलेगी ।
3. स्वयं को विश्व पिता या विश्व माता के रूप में देखें । जैसे एक माँ बच्चे की उन्नति से खुश होती है । वह भी मेरा ही आत्मिक भाई या बहन है । एक बार उसकी उन्नति में थोड़ी देर के लिए अपने को खुश करके देखें ।
इसके बाद आप दोनों भावों के अंतर को अनुभव करें । जब आप ईर्ष्या में थे तब कैसा अनुभव कर रहे थे और जब आप उसकी खुशी में खुश हैं तो कैसा लग रहा है ? जब आप ईर्ष्या कर रहे थे तब मन की स्थिति कैसी थी जैसे मन किसी भट्ठी में जल रहा था । मन के संकल्पों की गति असामान्य रूप से अधिक थी ।
जब आप प्रेमपूर्ण थे , खुशी से भरपूर थे , उस समय आपके मन की स्थिति कैसी थी ? आपका मन शांत व सामान्य था । मन के संकल्पों की गति भी सामान्य थी ।
जब तन बीमार होता तो हम तन को शक्तिशाली टॉनिक , दवाई आदि देकर शक्तिशाली बनाते हैं , उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाते हैं , तामसिक खान - पान का परहेज करते हैं ताकि जर्स खत्म हो इस बीमारी से मुक्त हो सके ।
इसी प्रकार मन के बीमार होते ही तुरंत व्यर्थ और नकारात्मक संकल्पों का परहेज करें । साथ ही राजयोग द्वारा मन को शक्तिशाली बनायें ताकि वह इस मनोविकार ( मेन्टल जर्स ) से लड़ सके ।
4. आप सोचें कि अगर सामने वाले को ये प्राप्तियाँ हो रही हैं तो जरूर उसका भाग्य है या पूर्व जन्मों का फल है या वर्तमान का पुरुषार्थ है जो उसे मिल रहा है । कहते हैं , कोई ना तो किसी का भाग्य बना सकता है , ना बिगाड़ सकता - है । जो आपके भाग्य में है , वह कहीं से भी आकर आपको - मिलेगा और जो भाग्य में नहीं है , वह आकर भी भाग जायेगा । इसलिए संतुष्ट रहें , खुश रहें ।
5. मन को बार - बार समझाइये । आप अपने विचारों से , गुणों से श्रेष्ठ बनिये , ना कि साधनों से ।
6. अपनी उपलब्धियों , विशेषताओं , गुणों को देखें , अपने श्रेष्ठ विचारों के शुद्ध स्त्रोत को देखें जिसे ईर्ष्या गंदा कर रही है ।
7. जैसे दिन - भर के पसीने , धूल - मिट्टी से साफ होने के लिए हम घर आकर स्नान करते हैं । उसी प्रकार दिन में बीच - बीच में परमात्मा के शुद्ध प्रेम का झरना स्वयं पर अनुभव करें , इससे मन पर जमी ईर्ष्या की धूल साफ हो जायेगी और उसका स्थान प्रेम ले लेगा ।
8. जिसके प्रति भी ईर्ष्या का भाव उठे , तुरंत उस इंसान पर प्रेम के शीतल जल का छिड़काव करें । अपने मन से ईर्ष्या की जलती लकड़ियों को खींचकर बाहर निकालें परिणामरूप चित्त से ईर्ष्या तिरोहित हो जायेगी । इस दुनिया में कोई आपको दुखी नहीं कर सकता जब तक कि आप खुद दुखी ना होना चाहें ।
जानबूझकर दुख लेने की बजाय अपने पर रहम करें । हमेशा सोचें कि यह सृष्टि एक रंगमंच है , मैं एक एक्टर हूँ , इसमें मेरा श्रेष्ठ पार्ट है । अन्य आत्मायें भी अपना पार्ट अच्छी रीति से बजा रही हैं । इस ड्रामा के हरेक पार्टधारी के पार्ट से मैं संतुष्ट हूँ । जो हो रहा है , वह अच्छा है , जो होगा वह और भी अच्छा होगा । मुझे सारा दिन प्रसन्न और संतुष्ट रहना है ।


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